मुहब्बत
जन्नत की तरह होती है
इससे ज्यादा पाक़
क़ायनात में दूजा कुछ
नहीं
हर कोई इसे पाने की
आरज़ू रखता है
मगर ये दौलत भी
तो
सबको नसीब नहीं होती
मेरे महबूब
इसे बिना हासिल किये
ये बात आख़िर कौन जान
सकता है
इस मख़मली सफ़ेद धुंए के
पीछे
एक ला-इलाज सा दर्द
छिपा बैठा है
और ये वो दर्द है
जिसके आगे हयात का हर
दर्द
बेहद ही मामूली
नज़र आता है।
© परी ऍम. 'श्लोक'
सच सबको मुहब्बत आसानी से नसीब नहीं होती.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआसानी से नहीं मिलती सब को मुहब्बत ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteगहन भाव ...उत्तम प्रस्तुति ...मुहब्बत लाइलाज़ मर्ज है दर्द लाज़मी होगा ...खूब कहा "हर कोई इसे पाने की आरज़ू रखता है"
ReplyDeleteमगर ये दौलत भी तो
ReplyDeleteसबको नसीब नहीं होती
मोहब्बत के दोनों पहलु को बखूबी बयान किया है आपने परी जी , अपने शब्दों में ! स्वागत
Beautifully expressed as usual Pari ! :)
ReplyDeleteमेरे महबूब
ReplyDeleteइसे बिना हासिल किये
ये बात आख़िर कौन जान सकता है
इस मख़मली सफ़ेद धुंए के पीछे
एक ला-इलाज सा दर्द छिपा बैठा है
लाजवाब !
सादर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-07-2015) को "जब बारिश आए तो..." (चर्चा अंक- 2025) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर
ReplyDeleteबहुत भावनात्मक गहराई लिए हुए । बहुत अच्छी
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