Thursday, June 25, 2015

तुम्हें रूह में रख कर

तेरा 
मेरे हो जाने से ज़्यादा ज़रूरी है 
हर लम्हा मेरे पास होना 
किसी भी शक़्ल में , किसी भी सूरत में 
दिल में धड़को ,सांस में महको,
या आफ़ताब की शुआओं से छू लो मुझे 

बात ये सोचने की है लेकिन 
फिर रिश्ते का नाम क्या होगा ?
मुझे रह-रह ख़्याल आता है 
इन नामी रिश्तों का ज़माने में 
एक आख़िरी दौर भी तो आता है
कभी कोई वादा तोड़ता है यहाँ 
कभी कोई जुबां से पलट जाता है 
इस तसलसुल में हर इन्साँ 
एक दूजे का हाथ छोड़ चला जाता है  

और मुझे खौफ़ है तुझे खोने का 
इसलिए बेनाम , गुमनाम , अंजान 
सा तआलुक तुमसे जोड़ लेते हैं 
के आओ।  तुम्हें रूह में रख कर 
जिस्म की सारी बंदिश तोड़ देते हैं !!


© परी ऍम. 'श्लोक'

8 comments:

  1. वाह "रूह में रख कर
    जिस्म की सारी बंदिश तोड़ देते हैं " बहुत खूब रूह और जिस्म की कश्मकश में दिल ने सदियो से रूह की ही तो तरफदारी की है

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  2. रूह मे रखकर जिसम की बदिशे तोड्ना
    आज के युग मे असंभव सा हो गया है
    स्वार्थ को जीतना है लगभग
    सुन्दर कल्पना

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  3. bahut sundar bhav liye huye rachna...

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  4. हर रिश्ते का नाम ढूंढना जरूरी नहीं .... रूह का रिश्ता जरूरी है ...

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  5. रूहानी रिश्तों के नाम नही होते..बहुत सुन्दर!

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  6. आओ तुम्हे रूह में रख कर---
    बहुत खूबसूरती से--अम्दाजे-बया-इकरारे-मुहब्बत बन पडी है.

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  7. और मुझे खौफ़ है तुझे खोने का
    इसलिए बेनाम , गुमनाम , अंजान
    सा तआलुक तुमसे जोड़ लेते हैं
    के आओ। तुम्हें रूह में रख कर
    जिस्म की सारी बंदिश तोड़ देते हैं !!
    सही कहा आपने परी जी कुछ रिश्तों को कोई नाम नहीं दिया जा सकता ! सुन्दर भाव

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