उसके सर पर गहरे घाव
हैं
वो अब कुछ कुछ मुझे भूल
गया है
हथेलियां जख्मी
हैं,
उंगलियां टूटी हुई, लब
चुप चुप से
वो दामन पकड़ के रोकता
है और
न जाने की इज़ाजत देता
है
पलकों से इशारा करके
न ही कोई उम्मीद देता
है मुझे
जब वो पहली दफ़ा मिला था
मुझे
उसकी आँखों में गज़ब
ख़ुशी थी
लेकिन आज उन्हीं आँखों
में बेहोशी है
लोगों ने इस हालत में
पाकर बाख़ूब लूटा है इसे
कोई नंगा कपड़े उतार ले
गया
किसी चोर ने बटुआ मार
लिया.......
शरीर पथराया हुआ सा है
उसका
मगर उसे छूकर महसूस
किया है मैंने
कुछ जान है जो अब भी
बाकी है
सच बहुत मारा है हालात
और वक़्त ने
अपने कटीले चाबुक से
मासूम को
कि देखो आज हमारा दिल
अज़ीज़ रिश्ता
हॉस्पिटल के आई. सी.
यू. में भर्ती है।
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© परी ऍम. 'श्लोक'
जाने अंजाने सारी सहनशक्ति हृदय से ही उम्मीद की जाते है और वो इसे हस्ते हस्ते सहने मे पारंगत है शायद , अच्छे जज़्बात बधाई
ReplyDeleteशरीर पथराया हुआ सा है उसका
ReplyDeleteमगर उसे छूकर महसूस किया है मैंने
कुछ जान है जो अब भी बाकी है
सच बहुत मारा है हालात और वक़्त ने
अपने कटीले चाबुक से मासूम को
कि देखो आज हमारा दिल अज़ीज़ रिश्ता
हॉस्पिटल के आई. सी. यू. में भर्ती है।
भावनाओं और रिश्तों के समंदर में हिचकोले लेती जिंदगी को बखूबी बयान किया है आपने परी जी !
बहुत ही मार्मिक चित्रण
ReplyDeleteबहुत खूब !!!
ReplyDelete"जब वो पहली दफ़ा मिला था मुझे
उसकी आँखों में गज़ब ख़ुशी थी
लेकिन आज उन्हीं आँखों में बेहोशी है
लोगों ने इस हालत में पाकर बाख़ूब लूटा है इसे"....एक मर्म स्पर्श !!!
Marmik chitran ...
ReplyDeleteभावनाओं के समुद्र में बहती सुन्दर रचना |
ReplyDeleteसत्य कभी-कभी मार्मिक भी होता है.
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति।
ReplyDelete.
सादर
मार्मिक रचना
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