Tuesday, June 2, 2015

वो कभी नहीं थकता था

वो कभी नहीं थकता था जो आज टूट गया है 
अपना साया ही ज़िस्म का खून चूस गया है 
जिसने गीले में सोकर सूखा हमें दिया बिस्तरा 
पाला हमें अभाव में भी मुस्कुरा के इस तरह 
ज़रा सा रो भी दें तो घंटो जो मनाया करते थे 
हर हाल में साथ हमारा जो निभाया करते थे 
उम्र लम्बी हो इसके खातिर माँ 
जाने कितने ही उपवास करती थी 
जो चेहरे से हमारे हर जज़्बात पढ़ती थी 
बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए 
जिस बाप ने अपनी झुलसायी जवानी 
उनके लिए जिस माँ ने भूख प्यास तक मारी  
जो बरसों उठाये फिरता रहा कांधो पे सवारी

जब बूढ़े हुए तो वो ज़िन्दगी के रोग हो गए 
माँ-बाप बच्चों के कांधों पर आज बोझ हो गए। 
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© परी ऍम. 'श्लोक'


5 comments:

  1. जब बूढ़े हुए तो वो ज़िन्दगी के रोग हो गए
    माँ-बाप बच्चों के कांधों पर आज बोझ हो गए।
    आखिरी दो पंक्तियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं और सोचने पर मजबूर कर देती हैं ! क्या सच में माँ बाप बोझ बन जाते हैं वृद्धावस्था में ?

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  2. apne shabdo ko khubsurti se pirokarka hakikat ko bakhoobi bayan kiya hai aapne.
    http://iwillrocknow.blogspot.in/

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  3. अच्छा लिखती हैं आप।

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  4. बहुत ही गभींर व विचारणीय विषय
    चिन्तन बहुत आवश्यक है

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  5. जब बूढ़े हुए तो वो ज़िन्दगी के रोग हो गए
    माँ-बाप बच्चों के कांधों पर आज बोझ हो गए।
    .......
    बड़ा स्वार्थी हो गया आज इंसान
    बड़ा दिल दुखता है ऐसी घटनाएँ सुनकर देखकर ..

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