वो कभी
नहीं थकता था जो आज टूट गया है
अपना
साया ही ज़िस्म का खून चूस गया है
जिसने
गीले में सोकर सूखा हमें दिया बिस्तरा
पाला
हमें अभाव में भी मुस्कुरा के इस तरह
ज़रा सा
रो भी दें तो घंटो जो मनाया करते थे
हर हाल
में साथ हमारा जो निभाया करते थे
उम्र
लम्बी हो इसके खातिर माँ
जाने
कितने ही उपवास करती थी
जो चेहरे
से हमारे हर जज़्बात पढ़ती थी
बच्चों
के सुनहरे भविष्य के लिए
जिस बाप
ने अपनी झुलसायी जवानी
उनके
लिए जिस माँ ने भूख प्यास तक मारी
जो बरसों
उठाये फिरता रहा कांधो पे सवारी
जब बूढ़े
हुए तो वो ज़िन्दगी के रोग हो गए
माँ-बाप
बच्चों के कांधों पर आज बोझ हो गए।
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© परी
ऍम. 'श्लोक'
जब बूढ़े हुए तो वो ज़िन्दगी के रोग हो गए
ReplyDeleteमाँ-बाप बच्चों के कांधों पर आज बोझ हो गए।
आखिरी दो पंक्तियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं और सोचने पर मजबूर कर देती हैं ! क्या सच में माँ बाप बोझ बन जाते हैं वृद्धावस्था में ?
apne shabdo ko khubsurti se pirokarka hakikat ko bakhoobi bayan kiya hai aapne.
ReplyDeletehttp://iwillrocknow.blogspot.in/
अच्छा लिखती हैं आप।
ReplyDeleteबहुत ही गभींर व विचारणीय विषय
ReplyDeleteचिन्तन बहुत आवश्यक है
जब बूढ़े हुए तो वो ज़िन्दगी के रोग हो गए
ReplyDeleteमाँ-बाप बच्चों के कांधों पर आज बोझ हो गए।
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बड़ा स्वार्थी हो गया आज इंसान
बड़ा दिल दुखता है ऐसी घटनाएँ सुनकर देखकर ..