उसके पास भी सांसें
थी
मगर वो अपने आपको रोज़
कोसता था
तारों से शिफ़ा मांगता
था
आँखें थी मगर सपनें
देखने से डरता था
रोज़ पहुँच जाता था वो
पागल
सड़क के बीचो-बीच
बागवानी करने
ज़िन्दगी के हर दिन की
कीमत अदा करने
एक दिन फूल लगाने वाले
उसके हाथों को
कोई अन्धा मुसाफ़िर लेकर
चला गया
सुना है आज
ख़ुदा ने उसकी गुज़ारिश
भी सुन ली
तेज़ रफ़्तार किसी गाड़ी
के पहिये में
बैठ के चला गया बिन
बताए किसी को
उसका पूरा घर उसे सफ़ेद
चादर तले ढूंढ रहा है।
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© परी ऍम. 'श्लोक'
मर्मस्पर्शी रचना.
ReplyDeleteजिंदगी खेल खेलती है ऐसे ... ज़िन्दग की कीमत ऐसे कोई अता न करे ... मर्मस्पर्शी भाव ...
ReplyDeleteदिल को छूती अत्यंत भावपूर्ण प्रस्तुति !
ReplyDeleteबेहद मार्मिक!
ReplyDeleteमार्मिक और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसराहनीय मर्म्स्पर्स्पर्शी रचना
ReplyDeletewaah bahut sundar ....
ReplyDeleteख़ुदा ने उसकी गुज़ारिश भी सुन ली
ReplyDeleteतेज़ रफ़्तार किसी गाड़ी के पहिये में
बैठ के चला गया बिन बताए किसी को
उसका पूरा घर उसे सफ़ेद चादर तले ढूंढ रहा है।
बेहद मार्मिक और शानदार शब्दों में लिखी बहुत बेहतरीन रचना परी जी !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeletedil chuu gayi apki ye rachna....
ReplyDeleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteबहुत ही सवेंदनशील रचना है
ReplyDeleteबहुत ही सवेंदनशील रचना है
ReplyDeleteToo touching
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