समंदर दर्द का ओक में
थामें
सहरा-ए-ज़िन्दगी की प्यास
बुझाते हुए
घटायें पलकों के दरीचे
पर टाँगे
शब तन्हाइयों में किसी
की याद पर गिराते हुए
माथे से उदासियों का
पसीना पोंछते हुए
किसी शनासा शक्स को
सोचते हुए
स्याही पीते हुए हर्फ़
बहाते हुए
कलम से तो कभी
पन्नो को हाल-ए-दिल
सुनाते हुए
किताबों के वरक़ पलट
सिसकियाँ भरते हुए
निगाहों के मकां में
महज़ इंतज़ार रखे हुए
चुपके से किसी के नाम
का कलमा पढ़ते हुए
उस सांवली लड़की
को
मैंने जब भी देखा है बस
ऐसे ही देखा है
मोहब्बत के उस एक रोज़
के बाद...... !!
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© परी ऍम.
'श्लोक'
ये मुहब्बत का रंग है ... ऐसे ही छलकेगा ...
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteमुहब्बत के दरिया में डुबो दिया आप की कलम ने उस सांवली लड़की को ...बहुत भावनात्मक रचना
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास से भीगी रचना
ReplyDeleteभीगे-भीगे से हसीन जज़्बात !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर एहसासो से भारे रचाना........... वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
ReplyDeleteहसीन ज़ज़्बातो का समन्दर उमड़ पड़ा है । बेहतरीन
ReplyDeleteहसीन ज़ज़्बातो का समन्दर उमड़ पड़ा है । बेहतरीन
ReplyDeleteहसीन ज़ज़्बातो का समन्दर उमड़ पड़ा है । बेहतरीन
ReplyDeleteखूबसूरत अहसासोँ का खूबसूरती से बय़ान
ReplyDeleteउस सांवली लड़की को
ReplyDeleteमैंने जब भी देखा है बस ऐसे ही देखा है
मोहब्बत के उस एक रोज़ के बाद...... !!
मोहब्बत में असर तो होता ही है वो भले एक दिन की हो या वर्षों की ! शानदार रचना लिखी है आपने परी जी