Sunday, May 31, 2015

सांवली लड़की को

समंदर दर्द का ओक में थामें 
सहरा-ए-ज़िन्दगी की प्यास बुझाते हुए 
घटायें पलकों के दरीचे पर टाँगे 
शब तन्हाइयों में किसी की याद पर गिराते हुए 
माथे से उदासियों का पसीना पोंछते हुए 
किसी शनासा शक्स को सोचते हुए 
स्याही पीते हुए हर्फ़ बहाते हुए 
कलम से तो कभी 
पन्नो को हाल-ए-दिल सुनाते हुए
किताबों के वरक़ पलट सिसकियाँ भरते हुए 
निगाहों के मकां में महज़ इंतज़ार रखे हुए 
चुपके से किसी के नाम का कलमा पढ़ते हुए 

उस सांवली लड़की को 
मैंने जब भी देखा है बस ऐसे ही देखा है 

मोहब्बत के उस एक रोज़ के बाद...... !!
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© परी ऍम. 'श्लोक' 

11 comments:

  1. ये मुहब्बत का रंग है ... ऐसे ही छलकेगा ...

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  2. मुहब्बत के दरिया में डुबो दिया आप की कलम ने उस सांवली लड़की को ...बहुत भावनात्मक रचना

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  3. खूबसूरत एहसास से भीगी रचना

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  4. भीगे-भीगे से हसीन जज़्बात !

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  5. बहुत ही सुन्दर एहसासो से भारे रचाना........... वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

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  6. हसीन ज़ज़्बातो का समन्दर उमड़ पड़ा है । बेहतरीन

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  7. हसीन ज़ज़्बातो का समन्दर उमड़ पड़ा है । बेहतरीन

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  8. हसीन ज़ज़्बातो का समन्दर उमड़ पड़ा है । बेहतरीन

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  9. खूबसूरत अहसासोँ का खूबसूरती से बय़ान

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  10. उस सांवली लड़की को
    मैंने जब भी देखा है बस ऐसे ही देखा है

    मोहब्बत के उस एक रोज़ के बाद...... !!
    मोहब्बत में असर तो होता ही है वो भले एक दिन की हो या वर्षों की ! शानदार रचना लिखी है आपने परी जी

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