दूर होकर भी वो दरमियाँ
रहता है
एक ज़ज़्बा है हरदम जवाँ
रहता है
प्यार की कोई भाषा नहीं
दोस्तों
ये वो पंछी है जो
बेजुबाँ रहता है
उस मुसाफ़िर से दिल तो
लगाया मगर
उससे पूछा नहीं वो कहाँ
रहता है
आदमी इश्क़ में तन्हा
होता नहीं
याद हो
दर्द हो कारवाँ रहता है
ख़त्म होती नहीं कोई भी
दास्ताँ
आग बुझ जाती है तो धुआँ
रहता है
जिस तरह चाहिए काम ले
लीजिये
दिल मेरा आप पर मेहरबाँ
रहता है
सोती हूँ पत्थरों की
ज़मीं पे तो क्या
सर सितारों भरा आसमाँ
रहता है
आप खाली मकाँ मत मेरा
देखिये
आँखों में देखिये
कहकशाँ रहता है
आदमी तो गुज़र जाता है
राह से
पीछे क़दमों का लेकिन
निशाँ रहता हैं
©परी ऍम. 'श्लोक'
अच्छी शायरी, शब्दों का चयन अच्छा है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शायरी । बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शायरी । बहुत बधाई
ReplyDeleteआदमी तो गुज़र जाता है राह से
ReplyDeleteपीछे क़दमों का लेकिन निशाँ रहता हैं
बहुत बढिया, परी जी।
सोती हूँ पत्थरों की ज़मीं पे तो क्या ,सर सितारों भरा आसमाँ रहता है....वाह वाह
ReplyDeletebahut sundar shabdon se bandhee rachna
ReplyDeletebhaut hi achcha
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