Tuesday, February 16, 2016

प्यार की कोई भाषा नहीं दोस्तों

दूर होकर भी वो दरमियाँ रहता है
एक ज़ज़्बा है हरदम जवाँ रहता है 

प्यार की कोई भाषा नहीं दोस्तों
ये वो पंछी है जो बेजुबाँ  रहता है 

उस मुसाफ़िर से दिल तो लगाया मगर 
उससे पूछा नहीं वो कहाँ रहता है

आदमी इश्क़ में तन्हा होता नहीं 
याद  हो  दर्द  हो  कारवाँ रहता है 

ख़त्म होती नहीं कोई भी दास्ताँ 
आग बुझ जाती है तो धुआँ रहता है 

जिस तरह चाहिए काम ले लीजिये 
दिल मेरा आप पर मेहरबाँ रहता है 

सोती हूँ पत्थरों की ज़मीं पे तो क्या  
सर सितारों भरा आसमाँ रहता है 

आप खाली मकाँ मत मेरा देखिये 
आँखों में देखिये कहकशाँ रहता है 

आदमी तो गुज़र जाता है राह से  
पीछे क़दमों का लेकिन निशाँ रहता हैं 

©परी ऍम. 'श्लोक'

7 comments:

  1. अच्छी शायरी, शब्दों का चयन अच्छा है

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  2. बहुत सुन्दर शायरी । बहुत बधाई

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  3. बहुत सुन्दर शायरी । बहुत बधाई

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  4. आदमी तो गुज़र जाता है राह से
    पीछे क़दमों का लेकिन निशाँ रहता हैं
    बहुत बढिया, परी जी।

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  5. सोती हूँ पत्थरों की ज़मीं पे तो क्या ,सर सितारों भरा आसमाँ रहता है....वाह वाह

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  6. bahut sundar shabdon se bandhee rachna

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