Saturday, September 13, 2014

"माँ" हर बात पर मुझको हिदायत देती थी....


"माँ" हर बात पर मुझको हिदायत देती थी
मैंने अक्सर कहा ही अब मैं बच्चा नहीं रहा

कहानियाँ परियो कि वो कश्तियाँ पानी में
सोन पापड़ी का नाम अब लच्छा नहीं रहा

आँखों में बड़े सपने हैं दिल में ज़बर जोश 
मैं अब माटी का खिलौना कच्चा नहीं रहा

निकल आया हूँ बड़ी दूर अपनी समझदारी में
मगर मेरे करीब "माँ" जैसा कोई सच्चा नहीं रहा

लो आज जब बच्चा बनने कि कोशिश बहुत कि
ज़माने वालो ने तरेर कर कहा अब तू बच्चा नहीं रहा

"माँ" मुस्कुरा के कहती है सुधर जाएगा बच्चा है
खाला कहती है कि मैं दूध पीता बच्चा नहीं रहा

जिंदगी फैसलों कि फसल है जो बोया वही काटा
अंजाम कब सोचते है 'श्लोक' अब बच्चा नहीं रहा


_____परी ऍम 'श्लोक'



 

4 comments:

  1. bahut behatareen vichar hai.....bahut achha

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  2. मन के भीतर पनपते मनोभावों को उकेरती सुन्दर रचना
    वाह बहुत खूब
    बधाई

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  3. खूबशूरत एहसास

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  4. Maa ki aason mein bandhe un chano ka vistaar to dekho
    Bachpan ki naav se tairte yovan ke kinaare to dekho
    tu umangon ki patvaar se jeevan ko khene chala hai
    tanik un pyar bhari lahron mein apna pratibimb to dekho



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