Friday, September 26, 2014

"हाँ ! जी की नौकरी ना जी का घर "





हमारे देश में बहुत सारी प्राइवेट कंपनीज़ है....और हो भी क्यों बेरोज़गारी प्राइवेट कंपनीज़ कि वजह से ही थोड़ा कम है ...अब सरकारी नौकरी के भरोसे बैठेंगे तो बस बैठे रह जाएंगे हाथ पर हाथ धरे.... अगर गलती से कोई फॉर्म भरा पेपर दिया और गलती से पेपर अच्छा हो गया तो इक आशा होगी की चलो पेपर क्लियर हो गया तो इंटरव्यू भी क्लियर हो ही जाएगा ... पर पता चलता है सब में पास हुआ ..लेकिन इंटरव्यू में लुढ़क गया फिर सोचता हूँ इंटरव्यू तो अच्छा दिया था पर लुढ़का कैसे आह !

अचानक दिमाग दौड़ता है बिलकुल सटीक पॉइंट पर बात समझ आती है मामला घूस का लगता है ..फिर पता चलता है दसवी में बार फेल लड़का पास कर गया इस इंटरव्यू को ..माथा ठनक जाता हैदेखा जो सोचा था वही हुआ ! खैर अब ये तो कोई बड़ी बात है नहींतो अब दिल पर क्या लेना?....झटक के चिंता को बढ़ जाता हूँ आगे की ओर .. अब अगर घर में बैठो तो दुनियाँ जीने देती है.. घरवाले ..रोज़ ताने ..रोज़ झगड़ा .. ऐसे पचड़ों से बेहतर कोई जॉब है चलो सरकारी सही प्राइवेट ही सही .. 

बस फिर अच्छा सा रिज्यूम तैयार करके नौकरी ढूंढने निकल पड़ते हैं और जितनी भी नौकरी की साइट्स हैं सब पर रजिस्ट्रेशन करवा देते हैं.. उसके बाद कॉल आनी शुरू हो जाती हैइक और टेंशन सर अच्छी नौकरी के लिए रजिस्टर करवाएं उसके चार्जेस हैं तीन महीने के लिए दो हज़ार.... छह महीने के लिए चार हज़ार.... और साल के लिए दस हज़ार रुपये भरने होंगे ... फिर हँसी आती है टेंसन वाली"लो भाई गाँव बसा नहीं लुटेरे पहले गए" .. और पटक के मारते हैं फ़ोन ... और फिर बिना किस सहयोग लगातार नौकरी कि ख़ाक छाननी पड़ती है .. क्या करें प्राइवेट कम्पनियो का हाल भी बहुत बुरा चल रहा है नौकरी उनके लिए है जो किसी के भाई-बाप के रिफरेन्स से आते हैं या तगड़ी पहुँच है .. .. अब मेरा बाप तो किसान है.. मेरा भाई है ही नहीं ! लेकिन बड़े पापड़ बेल कर जाकर इक दो महीने में नौकरी लग ही जाती है कुछ काबिलियत और ज्यादा अंग्रेजी के बल पर..क्यूंकि अब हमारे देश में हिंदी कहाँ चलती हैं सब कोई अंग्रेजी ही बोलता हैं ..कभी-कभी मैं भूल जाता हूँ कि भारत में हूँ या अंग्रेजो कि देश में !

अब रोज़-रोज़ मेनटेन होकर नौकरी पर पहुँच जाते हैं ढेर सारा काम करते हैं क्यूंकि भाई नौकरी तो क्लर्क कि हैं सब कोई काम पकड़ा जाता है .. शाम तक सारी मेन्टेनेन्स अस्त-व्यस्त हो जाती है ... अब किसी को मना भी क्या करना प्राइवेट नौकरी में बड़े पोस्ट पे बैठने वाले आराम करते हैं ... नीचे वाले काम करते हैं .. उसके बाद भी उनको रोज़ सैल्यूट मारना पड़ता हैं जिनके लिए दिल में इज्जत है नज़र में सही बोले तो भी हाँ...गलत बोले तो भी हाँ ... और जहाँ तक बात सही कि है यह मात्रा कम ही होती है... लेकिन ऐसा क्यों करें भाई ... प्राइवेट नौकरी है "हाँ जी कि नौकरी ना जी का घर" .. नौकरी इसलिए खतरे में नहीं होती कि काम अच्छा नहीं कर रहे बल्कि इसलिए ज्यादा खतरे में होती है कहीं इन बड़े पोस्ट पर बैठे कोट पहनने वाले लोगो कि ईगो हर्ट हुई हो ... अब भाई अपनी ईगो तो नौकरी है ये चली गयी तो घरवाले जीने देंगे बस यही सोच कर काम करता रहता हूँ बुद्धू बन कर सलाम ठोककर ...

क्यूंकि सरकारी नौकरी तो है नही सारी पावर क्लर्क के पास है... नीचे पैसे खसका दो काम हो जाएगा ... और ज्यादातर तो वहां कोई काम ही नहीं करता अब सुन लो कर्मचारी बीमा योजना के ऑफिस का हाल मेरे मुँह से भाई वहां मेरा अक्सर आना जाना रहता है पूछो वहां तो ऐसा दिखाते हैं मैं भीख माँगने गया हूँ उनके ऑफिस में ... वही . घूस देकर भर्ती होंगे तो काम भी तो घूस वाला ही करेंगे..जानते हो कभी-कभी बड़ा सोचता हूँ बिज़नेस करलूं ..पर पैसे कहाँ से लाऊँ ... कहीं घाटा लगा तो... साला हम मिडिल क्लास लोग सोचते बहुत हैं ..क्या करें? ..

अब बीवी मेरी कोई किटी पार्टी में तो जाती नहीं ...बिचारी को पार्क ले जाने के पैसे भी जेब में नहीं रखूँगा तो बेईमान पति बन जाऊँगा... तो सोचता हूँ गर्दन हिलाता रहूँ ..काम चलाता रहूँ ऐसे ही कमाता रहूँ ..बीवी खुश... तो मैं खुश अब अंदर से खुद को मार-मार के इतना मज़बूत तो हो ही गया हूँ कि सबकी ख़ुशी के लिए चेहरे पर झूठी लम्बी हँसी रख सकूँ ...ख़ुशी बाहर सही घर में ही बरक़रार रखने कि इक कोशिश तो कर लेता हूँ मैं!!!
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©परी ऍम 'श्लोक'

4 comments:

  1. ज्वलंत समस्या पर सटीक लेख !
    नवरात्रि की हार्दीक शुभकामनाएं !
    शुम्भ निशुम्भ बध -भाग ४

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  2. बहुत अच्छा लिखा आपने।

    सादर

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  3. आज की समस्या है ये ... सटीक प्रभावशाली लिखा है ...

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