Thursday, September 11, 2014

"ये मेरी आखिरी इल्तेजा है तुमसे "

तुम जा रहे हो तो जाओ
छोड़कर ये दर्द सारा
मेरी तन्हाइयो के पहरेदारी में
मैं नहीं रोकूंगी तुम्हे

मगर
ये मेरी आखिरी इल्तेजा है तुमसे

फिर न लौटना कभी
मरे हुए मेरे ख्वाबो को
छूकर जगाने के लिए
फिर से मेरी रूह को
किसी एहसाह से भिगाने के लिए

हाँ !
मैं अपने दिल के टुकड़ो को
समझा दूंगी 
कि तुम तसव्वुर थे मेरे...
ख्याल थे मेरे......
हकीकत कि ज़मीन से
उखड़े हुए हैं पाँव जिसके
जिसके साये में बेवजह
महफूज़ समझ लिया खुद को मैंने

और ...........

इस झूठ को दोहराती रहूंगी
जबतक धुंधला के गायब न हो जाए
तुझे पाने...खोने का एहसास
और
तेरे कहीं होने का यकीन तक !!!


________परी ऍम "श्लोक"

 

5 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर !

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  2. मर्मस्पर्शी प्रस्तुति !


    सादर

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  3. इस झूठ को दोहराती रहूंगी
    जबतक धुंधला के गायब न हो जाए
    तुझे पाने...खोने का एहसास
    और
    तेरे कहीं होने का यकीन तक !!!
    मन को छूते शब्द !

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