रुको ज़रा जिंदगी से जवाब आने दो
नींद में हूँ मुझे भी ख्वाब आने दो
लहरा उठेगा खामोश ये जंगल भी
ज़ीस्त हवाओ का पैगाम आने दो
फ़िक्र लिए फिर रहा है तस्सवुर मेरा
बेचैनियों को ज़रा आराम आने दो
यकीन है कि वो घर लौट आएंगे
दिन ढलने दो ज़रा शाम आने दो
नशे में होंगे तो कुछ बोल पाये शायद हम
इन हाथो में भी जाम आने दो
लिखूं तो लहूँ उतर जाए हर्फ़ की शक्ल में
कलम कि नोक में दम-ए-तलवार आने दो
बेपरवाह रहता है शिकवे थमा के मुझको वो
उसके सर पे भी इल्जाम आने दो
वो रोये हमें न पाकर किसी भी जर्रे में
सिला-ए-इश्क़ को इतना काम आने दो
बुझी साँसों को भी सकूं आ जाएगा
बस उसकी जुबां पे मेरा नाम आने दो
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
नींद में हूँ मुझे भी ख्वाब आने दो
लहरा उठेगा खामोश ये जंगल भी
ज़ीस्त हवाओ का पैगाम आने दो
फ़िक्र लिए फिर रहा है तस्सवुर मेरा
बेचैनियों को ज़रा आराम आने दो
यकीन है कि वो घर लौट आएंगे
दिन ढलने दो ज़रा शाम आने दो
नशे में होंगे तो कुछ बोल पाये शायद हम
इन हाथो में भी जाम आने दो
लिखूं तो लहूँ उतर जाए हर्फ़ की शक्ल में
कलम कि नोक में दम-ए-तलवार आने दो
बेपरवाह रहता है शिकवे थमा के मुझको वो
उसके सर पे भी इल्जाम आने दो
वो रोये हमें न पाकर किसी भी जर्रे में
सिला-ए-इश्क़ को इतना काम आने दो
बुझी साँसों को भी सकूं आ जाएगा
बस उसकी जुबां पे मेरा नाम आने दो
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
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