Sunday, March 30, 2014

"इनदिनों"

इनदिनों
मेरे हाथ
जिंदगी कि समझ का
इक मोती आ लगा है
मैं इसे जितना घिसती हूँ
ये उतना चमकता है
और
उतना ही प्रभावशाली
बनता चला जाता है
मुझमे मेरा व्यक्तित्व....

इनदिनों
मेरी खताओ को कोई
चुरा ले गया है मुझसे
मैं कोशिश भी करूँ तो
अब वो बचपन कि तरह
उस नादान उम्र कि तरह
वो गलतियां लौट कर
मेरे पास नहीं आती
डर के दुबक जाती है
कहीं किसी अँधेरे कोने में...

इनदिनों
मुझे लग रहा है
मैं आज़ाद हूँ
उड़ सकती हूँ
जितना चाहूं पंख फैलाऊं
पुरे गगन पे
अधिपत्य जमा लूँ
चूम आऊँ
वो चमकता गर्म सितारा
अपने पंखो से
उसके झुलसते चहरे पर
हवा कर दूँ ..

इनदिनों
शंख बन गयी हूँ मैं
जब भी गुंजती हूँ
सबको जगा देती हूँ
मेरे ताल में आवाज़ में
श्रद्धा उतर आई है..

कमल बन गयी हूँ
कीचड़ भी मुझपे
अपना प्रभाव नहीं डाल सकता
मेरे पंखुड़ियों कि लालियाँ
कीचड़ कभी भी
मटमैली नहीं कर सकता ..

इनदिनों
बेहद बदल गयी हूँ मैं
और अब केवल बदलाव चाहती हूँ !!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक

6 comments:

  1. Acche ke liye badlaav honaa chaahiye...sarthak rachna

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  2. वाह बेहतरीन

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  3. वाह... बहुत सुन्दर

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  4. बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं इस सकारात्मक सार्थक बदलाव के लिए ! यह निर्भयता, उड़ान और आत्मविश्वास मुबारक हो !

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  5. परिवर्तन सकारात्मक हो तो यह जीवन में आत्मविश्वास भर देता है, ...सफलता का रास्ता प्रसस्त करता है, यह स्वागत योग्य है | बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
    नई पोस्ट माँ है धरती !

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