Wednesday, July 9, 2014

मन....

असहाय हो जाती हूँ
जब रहता नहीं
मन पर
मेरे स्वयं का
नियंत्रण..
खींची नहीं जाती
इसकी लगाम
गिरगिट की तरह
बदलता रहता है
अपना रंग
और
ये हदो को पार करके
पैदा कर देता है
अजीब सी परिस्थिति
भागती रहती हूँ मैं
इसके पीछे-पीछे
व्यर्थ ही
समझ नहीं पाती
इसकी मंशा
और
जब समझ पाती हूँ
तो दोष खुद को
देने के अलावा
कोई दूसरा
विकल्प नहीं रहता !!!

____________परी ऍम श्लोक

6 comments:

  1. मन सदैव कहाँ नियंत्रण में रह पता है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  2. मन के द्वंद्व को व्याख्यायित करती सार्थक प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !

    ReplyDelete
  3. हम सभी कभी न कभी ऐसे द्वंद से जूझते हैं।
    बेहतरीन पोस्ट।

    सादर

    ReplyDelete
  4. ​बहुत ही सुन्दर बढ़िया

    ReplyDelete

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!