ख़त्म ये गिला शिकवा हो जाए
नया सा शुरू सिलसिला हो जाए
लबों पर सलामत रहे सदियों
तक
उठे हाथ जब भी दुआ हो जाए
रहेगी कमी फिर ज़माने में क्या
जो महबूब अपना
ख़ुदा हो जाए
इसे खुश नसीबी समझ
लेंगे हम
जो हर साँस
उन पर फ़ना हो जाए
मज़ा फिर बिखरने में भी
आएगा
बने फूल हम वो हवा हो जाए
मुझे काश जुर्म – ए - मुहब्बत में जाँ
तेरे साथ की ही सज़ा हो जाए
निभाना न आये वफ़ा
जिनको भी
मेरी जिंदगी से दफा हो जाए
वही आदमी से किनारा कर लो
बड़ी जब किसी
की अना हो जाए
अजी जिंदगी का भरोसा
ही क्या
मना लो जो कोई खफ़ा
हो जाए
बड़ी तल्ख़ मालूम पड़ती है गर
सनम पास आकर जुदा हो जाए
तेरे इश्क़ में शायरी कह - कहके
कहीं जाँ न हम शायरा हो जाए
© परी ऍम. 'श्लोक'
बेहतरीन रचना , अजी जिंदकी का भरोसा ही क्या ,माना लो जो खफा हो जाए ...वाह
ReplyDeleteअजी जिंदगी का भरोसा ही क्या
ReplyDeleteमना लो जो कोई खफ़ा हो जाए
...वाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति । परी तो श्लोक बन गई । वाह !
ReplyDeleteप्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति ; सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (03-09-2015) को "निठल्ला फेरे माला" (चर्चा अंक-2087) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
क्या बात क्या बात परी जी आपने तो बिखरने को भी संवार दिया।
ReplyDeleteअदभूत।
क्या बात क्या बात परी जी आपने तो बिखरने को भी संवार दिया।
ReplyDeleteअदभूत।
शायरा तो आप हैं ही अभी भी ..
ReplyDeleteबहुत लाजवाब शेर ... प्रेम के रंग में रंगे ...
इसे खुश नसीबी समझ लेंगे हम
ReplyDeleteजो हर साँस उन पर फ़ना हो जाए
मज़ा फिर बिखरने में भी आएगा
बने फूल हम वो हवा हो जाए
मुझे काश जुर्म – ए - मुहब्बत में जाँ
तेरे साथ की ही सज़ा हो जाए
प्रेम में सराबोर उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने परी जी !!
उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ,
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too good ...ji
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