Monday, December 21, 2015

समंदर है कहीं सूखी नदी है .....

समंदर है कहीं सूखी नदी है
इसी का नाम शायद जिंदगी है 

बताओ मुस्कुराए कोई कैसे  
ग़मों की गोद में बैठी ख़ुशी है 

अमन के वास्ते मज़हब बनाये 
वो होली खून के पर खेलती है 

गरीबों का लहू पीकर तरक्की
अमाँ हद दर्जे की ये बेहिसी है 

सितम देखो की हर इक दौर में ही 
लुटी सीता, अहल्या, द्रोपदी है 

वो देखो फिर गली के आदमी ने 
हवस में नोच डाली इक कली है 

जो अपराधी था देखो 'दामिनी' का 
वही मुज़रिम अदालत से बरी है  

हमारे इश्क़ के ही तो बदौलत 
तेरे चेहरे पे आयी ताज़गी है 

ज़रा कर बात तू औक़ात वाली 
तेरे बस की कहाँ दरियादिली है 

ख़ुदा तू  हो नहीं सकता कभी भी
फ़क़त तू आदमी है आदमी है 

सियासत के बड़े माहिर खिलाड़ी 
अजी लाशों पे रोटी सेंक ली है 

कज़ा से हम करे कैसी शिकायत 
मिटाती जा रही ये जिंदगी है 

नज़र कमज़ोर बूढी हो गयी पर  
महक से माँ मुझे पहचानती है

मुझे मत मार दुनिया देखने दे 
वो बच्ची कोख़ में से बोलती है 

जुबाँ औ दिल 'परी' बोले बराबर
ये आदत तो हमारी भी बुरी है 
______________ 
© परी ऍम. 'श्लोक' 


4 comments:

  1. जो अपराधी था देखो 'दामिनी' का
    वही मुज़रिम अदालत से बरी है! अति सुन्दर प्रस्तुति! वर्तमान न्याय व्यवस्था पर प्रहार करती हुई!

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  2. 12 , 14 , 16............कितने साल का हो लुच्चा समझो ॥
    लूटे जो लड़की की अस्मत उसको मत बच्चा समझो ॥
    पकड़ के उसको सरेआम कर दो औरत के नाक़ाबिल ,
    इसको कोई पाप नहीं पूजा समझो अच्छा समझो ॥
    -डॉ. हीरालाल प्रजापति

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  3. अच्छी प्रस्तुति परी ऍम. 'श्लोक'जी

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  4. अच्छी प्रस्तुति परी ऍम. 'श्लोक'जी

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