Thursday, July 10, 2014

कैसा नियम है ये ??

शिकारियों के
शिकार से
आज फिर
हरियल जोड़ा
अचेत हो
आ गिरा ज़मीन पर।
जिनकी उड़ान के
हिस्से में
जाने कब
वो जमीन की
सतह लिख दी गयी
जिनका जीवन भर
उनकी कल्पना से
सरोकार नहीं था।
सारे परिंदे
अपने घोसलों में
खामोश होकर बैठ गए
नियम का हुंकार भर।
व्यर्थ में कौन बोलेगा ?
आखिर कौन
बेकार में शिकार होना चाहेगा ?
जान तो सबको प्यारी है ?
शिकारियों को
इस अपराध पर
ग्लानि तक नहीं।
वो फिर से
पैनी निगाहो से
ताड़ रहे हैं
और फिर से तैयार हो गए हैं
दूसरे नए जोड़े कि
नृशंशय हत्या करने को।
चल रहा है
यही सिलसिला निरंतर
नियम और
परम्परा के दम पर।
आते रहते हैं
इसी कहानी के अन्तर्गत
हर दिन नए-नए किरदार !!


....................परी ऍम 'श्लोक'

(ऑनर किलिंग पर लिखी रचना )

(नियम.. कानून...ये इंसान द्वारा ही बनाएं गए है जिसे इंसान ने अपने बेहतरी के लिए बनाएं हैं किन्तु यदि इन्ही के नाम पे इंसान किसी दूसरे इंसान के प्रति हिंसक हो जाए तो असल में वो नियम या तो संशोधन के योग्य बन जाते हैं या फिर समाप्ति के... माफ़ करियेगा यहाँ मेरा उद्देश किसी को ठेस पहुँचना नहीं है परन्तु जो नियम अपराध को जनम देते हैं उनको उनको लगाम लगवाने का है क्यूंकि हाँ ! मैं विरोधी हूँ !!)

2 comments:

  1. शिकारियों को
    इस अपराध पर
    ग्लानि तक नहीं।
    वो फिर से
    पैनी निगाहो से
    ताड़ रहे हैं
    और फिर से तैयार हो गए हैं
    दूसरे नए जोड़े कि
    नृशंशय हत्या करने को।

    ​सुन्दर , भावनात्मक प्रस्तुति

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