Tuesday, July 22, 2014

तुझसे दूर होकर भी तेरी चाहत नहीं छूटी....

बड़ी मसली बड़ी रौंदी मगर हसरत नहीं छूटी
तुझसे दूर होकर भी तेरी चाहत नहीं छूटी

जैसे कोई रंग लगाया हो तूने रूह में मेरी
मैंने लाख कोशिश की मगर रंगत नहीं छूटी

मैंने छत पे जाना बरसो पहले छोड़ दिया है
चाँद का आँगन में उतर आने की फितरत नहीं छूटी

बंद कर के बैठी हूँ दरख्ते और रोशनदान
तेरी यादो की फिर लेकिन वही शिरकत नहीं छूटी

खुद को बदल डाला सर से पैर तक मैंने
मगर दिल पागल की अभी हरकत नहीं छूटी

नदी से रूठ कर किनारो पर मैं बैठ गयी हूँ
लेकिन लहरो के भीगा देने की जहमत नहीं छूटी

तू बादल या बारिश है हवा है या रोशनी
बिना बुलाये चले आने की तेरी आदत नहीं छूटी

----------------------------परी ऍम 'श्लोक'

3 comments:

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