Sunday, July 27, 2014

तुम हो साकार स्वप्न मेरा


बरसो की हुई
साधना हो तुम मेरी
गूढ़ अनमोल चाहत हो
भूमण्डल हो मन का
सोच का आवरण हो
पूरा ब्रह्माण्ड हो तुम मेरा

मेरी शक्ति हो
जो तुम हो तो हर शय मेरी
देह के अंदर जलता हुआ
आत्मा का प्रकाश हो
साकार स्वप्न हो मेरा
वो बिंदु हो जिसपर केंद्रित हूँ मैं
 

जौहरी हो तुम जड़ते हो
हीरे-मोती निखार देते हो मुझे
हो तुम लबो का गीत
कंठ का लय
धड़कनो की सरगम
धमनियों में बहते हो
हर सांस में रहते हो

हो तुम ....
तपस्या का वो फल
जिसने जीवन की कड़वाहट मिटा
इसे शहद से भी ज्यादा
मीठा बना दिया है !!
 
---------------परी ऍम श्लोक 

4 comments:

  1. सुन्दर सुमधुर रचना

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  2. अरे वाह ! आस्था एवं अनुराग की अद्भुत प्रस्तुति ! बहुत ही सुंदर रचना !

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  3. आत्मिक प्रेम की खूबसूरत अभिव्यक्ति


    सादर

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  4. सच कहो तो ये प्रेम है जो उनके माध्यम से संवार रहा है ...
    भावपूर्ण ...

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