उखड़ती जा
रही हूँ ज़िन्दगी से
न मर जाऊं
कहीं तेरी कमी से
गवांचे आस
के हैं चाँद तारे
घिरी हूँ
हर तरफ मैं तीरगी से
मेरे दिल
साथ तुम दे दो हमारा
उभरने दो मुझे इस त्रासदी से
ज़माने में
हसीं चेहरे कई हैं
हमारी आशिक़ी
है आप ही से
तुम्हारे आने
का बस एक वादा
अजी हम
काट दे सदियाँ ख़ुशी से
मुहब्बत का
सफ़र है जन्नतों तक
नहीं हासिल
मगर कुछ बेरुखी से
बहाने से
महज़ मैं टालती हूँ
है कब
ये भूख मिटती शायरी से
छिपाते फिर
रहे हैं हमको खुद से
उन्हीं में
फैले हैं हम रौशनी से
सफ़र लम्बा
पड़ा है जिंदगी का
हमारे
पाँव जलते हैं अभी से
दग़ा अपना
ही साया दे रहा है
करें उम्मीद
फिर क्या आदमी से
सुनाये
जाते हो फ़रमान अपना
रज़ा तुम
पूछ तो लेते 'परी' से
___________________
© परी ऍम. 'श्लोक'
अच्छी ग़ज़ल ।
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल ।
ReplyDeletebahut sundar likha aapne ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना ..........बधाई |
ReplyDeleteआप सभी का स्वागत है मेरे इस #ब्लॉग #हिन्दी #कविता #मंच के नये #पोस्ट #चलोसियासतकरआये पर | ब्लॉग पर आये और अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |
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परी ऍम. 'श्लोक'जी बहुत सुन्दर रचना
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