Wednesday, October 15, 2014

सोच गहरी थी... ज़ज़्बा मुकम्मल था !


सोच   गहरी    थी    ज़ज़्बा  मुकम्मल    था
यूँ  तो   खिलाफ   मेरे   खड़ा  पूरा  शहर था.....
ये जलन थी या  फिर  उसूल  था  मालूम  नहीं
बेटियो के  लिए  नियम कानून था  मालूम  नहीं...
घर अपना देखती या ज़माने भर की फ़िक्र करती
मुझे बकवास लगती  किसी  की भी  दहशतगर्दी
  
घर में   मुफलिसी  का  आलम  था  जाते   कहाँ ?
किसी  से  इक  नवा  कहते  भी  तो  पाते   कहाँ ? 
मुझे   मालूम  था  आगे - आगे   होना    क्या  है ?
इस सफर में  मिलने  की एवज़ में  खोना   क्या है?  
अपनों के  भालो  से  घायल  हम  हर  रोज़    हुए
यही  वो  जख्म   थे   जिनसे  हम   सरफ़रोश   हुए
  
कुछ  नया  करो तो  सीधा इज्जत पे बात आती  है
कदम कदम पर तोहमतों की कीले बिछाई जाती  हैं  
किसी    ने  कहा   दुपट्टा   गले    में     डालती   है
किसी    ने   कहाँ   जींस  पेंट   में  फैशन  मारती हैं
कोई   कहने   लगा   होंठो   पर  लगी  लाली देखो
कोई  कहता  उर्फ़  कानो  में  लटकती  बाली देखो  
कब   तक   उनकी  बातो   को  दिल   में  घर  देती
कब   तक   शबनम   के   बूँद   से  दामन भर लेती  
श्लोक   जानती    हैं   हालतो   से   लड़ने  का  हुनर
आ..  कोई  अंगार  मेरे   झोपड़ी  से होके  तो  गुजर

आज ये आलम है दोस्तों...
उनके    बच्चे    मुझे    अपना    मिसाल   कहते   हैं  
मेरे   जैसे   बनेगे   अपनों   से   हर   बार   कहते    हैं 
यही   मेरी   कमाई    है  जो   मैंने  आज  तक पायी है
रही  पैसो   की  बात उसने  तो  बस  भूख  मिटाई   हैं !!

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© परी ऍम 'श्लोक'

10 comments:

  1. Sachhi aur gahari baat. Bahut khub :)

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  2. बहुत खूब परी जी


    सादर

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  3. Desh kee aadhi abaadi ka dard aapne chand panktiyon me bayan kar diya. Sarahniya prayas.

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  4. जी बिलकुल सच है किसी को तो शुरु करना ही है चाहे मुश्किलों से गुजरना पड़ता है! सुंदर रचना बधाई

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  5. तोहमतो की कील तो हर अच्छी राह मिल जायेगी।
    बस रूह को सुकून मिलता रहे और यों ही चलते रहे ।
    खुबसूरत अभिव्यक्ति ।

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  6. परी जी बेहद खूबशूरत अहसास पिरोये हैं आप नें

    तोहमतों की कील ज़िगर में ठोक कर
    बा- अदब वो मुझको सलाम करता है
    वक्त ने ही मुह फेर मेरे कान में कहा
    तुझ जैसे हजारों को घर हमने जलाए हैं

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  7. कुछ नया करो तो सीधा इज्जत पे बात आती है
    कदम कदम पर तोहमतों की कीले बिछाई जाती हैं
    सुन्दर रचना परी जी |

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  8. कुछ नया करो तो सीधा इज्जत पे बात आती है
    कदम कदम पर तोहमतों की कीले बिछाई जाती हैं
    किसी ने कहा दुपट्टा गले में डालती है
    किसी ने कहाँ जींस पेंट में फैशन मारती हैं
    कोई कहने लगा होंठो पर लगी लाली देखो
    कोई कहता उर्फ़ कानो में लटकती बाली देखो
    सुन्दर शब्द , एकदम बढ़िया

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