Friday, October 17, 2014

कितनी रंगीन है तबियत सोच नंगी है...


कितनी रंगीन है तबियत सोच नंगी है
ज़ज़्बात  की  न पूछ  वो  तो  जंगी  है

दिखाते हैं बातो  में  गज़ब दरियादिली
उनकी आँखों में झांको बेहद बदरंगी है


गिरगिट भी हैरान हुआ करता है देखकर
इंसान  पेशे  से  ही  हुनर  में   बहुरंगी  है


रोज़  अखबारों  में आती ख़ूनी सुर्खियाँ
समाज  की  व्यवस्था  अज़ब  बेढंगी है


सुनकर   शर्मसार  होती   हूँ   बहुत   मैं
औरत  की  भी  इस  दुनियाँ  में मंडी है


पहले  सुनती  थी  खुदा  हिसाब  करेगा
इन्साफ की तराजू उसकी भी अब ठंडी है


जिनकी  छत  पर  उतर  जाता  है   चाँद
उन्ही  के  नीचे  दबी  हुई  ज़मीन गन्दी है


______________________
© परी ऍम 'श्लोक'

14 comments:

  1. उत्कृष्ट रचना..।।

    ReplyDelete
  2. मंडी औरतों की नहीं हर उस शख्स की हो चली है जो बिकाऊ है।
    बहुत सुन्दर रचना ।

    ReplyDelete
  3. JAHAAN AAGE OR BHI HAI JI BETA JI !! GHABRANA NAHI JIWAN MAIN BADE RANG HAIN ! AAWSHYAKTA SIRF NAZAR OR SOCH KO DOOR TAK LE JAANE KI HAI ! LIKHA AAPNE BADA HI STY HAI ! LEKIN YE SHURUAATI PARICHYA HAI JIWAN KAA ,BAAD MAIN SATYA KI KHOJ KARNI HOGI AAPKO JIWAN MAIN ! SHUBHKAAMNAYEN !!

    ReplyDelete
  4. Pitamber Dutt ji .. Ham aapke baat se ittefaak rakhte hai hame abhi aage tak jaana hai ye to bas shuruati kadiyaan hai jo likhi hai maine .. Mujhe khud se behad apekshaayein hain koshish zaari rakhegi.. Aage jaane ki kuch nyi baat saamne laane ki ... Aapke sneh ki liye hardik aabhaar uncle ji .. Aap aate rahi kamiya va khubiyaan bataate rahiyega .. Dhanywad !!

    ReplyDelete
  5. बहुत खूब ... हर शेर हकीकत की बयानी है ... लाजवाब ...

    ReplyDelete
  6. बहुत ही बढ़िया

    ReplyDelete
  7. जमीनी हकीकत बयां करती सटीक रचना ...

    ReplyDelete
  8. अच्छी सोच अच्छे भाव .... इस दुनियाँ में हर उस चीज की मंडी है जो बिक सकती है, जो चीज बिके नहीं या बिकने को तैयार न हो उसकी कभी मंडी नहीं लगती ... दुनियाँ ऐसी ही है, जैसे जैसे लोग अधिक सुसभय एवं सुसंस्कृत होंगे वैसे वैसे औरतों का सम्मान बढ़ता जाएगा। हाँ अधिक धार्मिक नहीं अधिक सभ्य , क्योंकि आज सीरिया और इराक़ मे औरतों की नीलामी की जा रही है और वो भी धर्म के नाम पे युद्ध लड़ने वाले लोगों के द्वारा ।

    ReplyDelete
  9. रोज़ अखबारों में आती ख़ूनी सुर्खियाँ
    समाज की व्यवस्था अज़ब बेढंगी है

    Waah.... Bejod, Sach se rubaru karwati abhvykti

    ReplyDelete
  10. कटु यथार्थ के कठोर धरातल पर साँस लेती बेबाक प्रस्तुति ! बढ़िया रचना !

    ReplyDelete
  11. लाजवाब रचना समाज की सोच बदलते लम्बा वक़्त लग जाता है मगर इंसान समझोते करना भी सीख ही जाता है

    ReplyDelete
  12. सुनकर शर्मसार होती हूँ बहुत मैं
    औरत की भी इस दुनियाँ में मंडी है
    बहुत ही सटीक और सार्थक

    ReplyDelete

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!