Monday, October 6, 2014

तुम्हे कैसे कहूँ ??

 
इक बात है
जो जुबान की दहलीज़ पर आकर
अटक जाती है
खामोशियो की कुंडी में
और बस फड़फड़ाती रहती है
कश्मकश के पिंजरे में कैद
किसी बेसब्र परिंदे की तरह

सोचती हूँ
तुम्हे बिठा कर अपने पास
सारी हसरतें आज़ाद करदूँ
फिर जो भी हो देख लूँगी
पर
इतना आसान कहाँ है इश्क़..........
किसी ने सच ही कहा है
"आग का दरिया है
और डूब कर जाना है"

तुम बोलना शुरू करते हो कि
सुनते रहने की
आवारा आरज़ू जाग जाती है
अब तुम ही बताओ
कैसे कहूँ ? 
रात भर जो
बेकाररियाँ साथ होती है
रात भर जो नींद छटपटाती है
रात भर जो भटकता है
तसव्वुर तेरी तलाश में 

जो बात इक कदम भी
आगे बढ़ती नहीं
वो बात मुझे कहना है
बताओ न 'श्लोक'
आखिर तुम्हे कैसे कहूँ ??

 ____________
© परी ऍम. 'श्लोक'

6 comments:

  1. बहुत सुन्दरता से प्रेमी मन की दुविधा को प्रस्तुत किया गया गया .......शानदार कविता

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति! आदरणीया परी जी!
    धरती की गोद

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  3. सुनते रहने की
    आवारा आरज़ू जाग जाती है
    अब तुम ही बताओ- इतनी सुन्दर रचना को सराहे बिना कोई रह सकता है? बहुत सुन्दर ,बहुत बधाइयां - !

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  4. बहुत सुन्दर "कश्मकश के पिंजरे में कैद किसी बेसब्र परिंदे की तरह"

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