Saturday, December 26, 2015

सितारे रात तन्हाई तुम्हीं को गुनगुनाते हैं

सितारे  रात   तन्हाई    तुम्हीं  को   गुनगुनाते  हैं 
अभी तक याद के जुगनू ज़हन में झिलमिलाते हैं 

नज़र के  सामने गुज़रा  हुआ जब  दौर आता   है 
कई  झरने  निग़ाहों   में   हमारे   फूट   जाते    हैं 

उन्हें कह  दो न इतरायें  ज़रा सी  रौशनी  पाकर 
ये  सूरज  चाँद  तारे  घर  मेरे  पहरा  लगाते  हैं 

नहीं मिलता है सहरा में कभी जज़्बात का दरिया 
शज़र क्यूँ बेवज़ह ही प्यार का इस पर  लगाते हैं 

चले आओ किसी भी सम्त से बनकर हवा साथी 
चमन के  फूल  सारे आपको   शब भर बुलाते हैं 

अरे! इस  आईने  का भी  ज़रा  देखें  बेगानापन 
हमारे अक्स  में ये  आपका  चेहरा  दिखाते  हैं 

लगाकर मैं ये सारी मुश्किलों की तल्ख़ियाँ लब से 
बजाऊँ  यूँ  कि  जैसे  बाँसूरी   कान्हा  बजाते  हैं 

क़यामत तक नहीं मिलती निशानी प्यार की यारो 
मुहब्बत  की  तलाशी में  बदन तक टूट  जाते हैं 

सफ़र  ये  जिंदगानी  का  सफ़र  ऐसा है   मेरी जाँ 
कि मिलती है अगर मंज़िल तो साथी छूट जाते हैं 


© परी ऍम. 'श्लोक' 

17 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना ।


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  2. बहुत सुंदर रचना ।


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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. वाह क्या एहसास है। इतनी सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई।

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  6. वाह क्या एहसास है। इतनी सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई।

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  7. नज़र के सामने गुज़रा हुआ जब दौर आता है
    कई झरने निग़ाहों में हमारे फूट जाते हैं
    ...वाह...दिल को छूते अशआर..बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...

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  9. परी जी, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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  10. सुन्दर नव वर्ष की शुभकामनाए

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