आँखों
की रोशन लवें बुझी हैं
रात
के कब्ज़े में संतरी लम्हें चले आएं
उदास
हवाएं दरख्तों से नीचे नहीं उतरी
नींद
के जुगनू बागो में टहलने नहीं आये खामोश हैं सदायें सारी
सुन्न
है आलम सारा
कोई
आहट नहीं ..सरसराहट नहीं...
मैंने
उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से
मगर
दूर तक बस्ती पर जुल्मतों का ही साया हैं
आज
फिर आस्मां को घटाओं ने घेर रक्खा है
आज
फिर मुझसे मिलने न चाँद आया है !!
©परी
ऍम. 'श्लोक'
मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से
ReplyDeleteमगर दूर तक बस्ती पर जुल्मतों का ही साया हैं............बढ़िया प्रस्तुति!
सुन्दर भावमय रचना ...
ReplyDeleteइन उम्मीद के तिनकों को बुझने न देना ... घटाएं लौट जायेंगी, चाँद फिर से निकलेगा ...
ReplyDeleteसमय है जो इम्तिहान लेता रहता है प्रेम का ...
'उम्मीद के तिनके' बहुत ख़ूब..!
ReplyDeleteआप की प्रस्तुति सुंदर परी जी !
ReplyDeleteसाम का सेहरा फिर चला आया ,
किसने उसको गीता पाठ पढ़ाया |
यादो की उम्मीद जब जहाँ भाया ,
डाकिये खुशियां घरपर लाया ||sukhmangal@gmail.com mobil-9452309611
मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से
ReplyDeleteमगर दूर तक बस्ती पर जुल्मतों का ही साया हैं
आज फिर आस्मां को घटाओं ने घेर रक्खा है
आज फिर मुझसे मिलने न चाँद आया है !!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति परी जी ! उम्मीदों के तिनके बहुत अच्छे होते हैं !
wah umda prastuti....khas kar antim kuch lins mujhe bahut acche lagay
ReplyDeleteपरी जी बहुत सुंदर कल्पना सजाई है ...भाव और शब्द दोनों प्रभावी ....शुभकामनाएँ
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति…
sundar rachna...............
ReplyDeleteCome to my blog and read hindi poems written by Rishabh Shukla (me).
http://hindikavitamanch.blogspot.in/?m=1
मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से
ReplyDeleteमगर दूर तक बस्ती पर जुल्मतों का ही साया हैं
आज फिर आस्मां को घटाओं ने घेर रक्खा है
आज फिर मुझसे मिलने न चाँद आया है !!
बहुत सुंदर.
"मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से.."
ReplyDeleteBeautifully penned..so lyrical and tender :)