Tuesday, February 24, 2015

शाम का चेहरा

शाम का चेहरा उतरा हुआ सा है
आँखों की रोशन लवें बुझी हैं
रात के कब्ज़े में संतरी लम्हें चले आएं
उदास हवाएं दरख्तों से नीचे नहीं उतरी
नींद के जुगनू बागो में टहलने नहीं आये
खामोश हैं सदायें सारी
सुन्न है आलम सारा
कोई आहट नहीं ..सरसराहट नहीं...
 
मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से
मगर दूर तक बस्ती पर जुल्मतों का ही साया हैं
आज फिर आस्मां को घटाओं ने घेर रक्खा है
आज फिर मुझसे मिलने न चाँद आया है !!
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©परी ऍम. 'श्लोक'

12 comments:

  1. मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से
    मगर दूर तक बस्ती पर जुल्मतों का ही साया हैं............बढ़िया प्रस्तुति!

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  2. सुन्दर भावमय रचना ...

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  3. इन उम्मीद के तिनकों को बुझने न देना ... घटाएं लौट जायेंगी, चाँद फिर से निकलेगा ...
    समय है जो इम्तिहान लेता रहता है प्रेम का ...

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  4. 'उम्मीद के तिनके' बहुत ख़ूब..!

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  5. आप की प्रस्तुति सुंदर परी जी !
    साम का सेहरा फिर चला आया ,
    किसने उसको गीता पाठ पढ़ाया |
    यादो की उम्मीद जब जहाँ भाया ,
    डाकिये खुशियां घरपर लाया ||sukhmangal@gmail.com mobil-9452309611

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  6. मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से
    मगर दूर तक बस्ती पर जुल्मतों का ही साया हैं
    आज फिर आस्मां को घटाओं ने घेर रक्खा है
    आज फिर मुझसे मिलने न चाँद आया है !!
    ​बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति परी जी ! उम्मीदों के तिनके बहुत अच्छे होते हैं !

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  7. wah umda prastuti....khas kar antim kuch lins mujhe bahut acche lagay

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  8. परी जी बहुत सुंदर कल्पना सजाई है ...भाव और शब्द दोनों प्रभावी ....शुभकामनाएँ

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति…

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  10. sundar rachna...............
    Come to my blog and read hindi poems written by Rishabh Shukla (me).

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/?m=1

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  11. मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से
    मगर दूर तक बस्ती पर जुल्मतों का ही साया हैं
    आज फिर आस्मां को घटाओं ने घेर रक्खा है
    आज फिर मुझसे मिलने न चाँद आया है !!
    बहुत सुंदर.

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  12. "मैंने उम्मीद के तिनके जलाएं हैं गीली माचिस से.."
    Beautifully penned..so lyrical and tender :)

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