वाह ! क्या बात है ! लेकिन हमने सुना है संवेदनशील पत्थरों के सीने में भी दिल होता है और धडकनें वहाँ भी जज्बातों की लय पर गिनी जा सकती हैं ! सुन्दर चाह और उस चाहत की अभिव्यक्ति !
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पाषाण ही हैं इधर भी और
ReplyDeleteउधर भी बिखरे हुऐ हम सभी
कुछ कठोर कुछ मुलायम
कुछ सुधरे हुऐ :)
बहुत सुंदर ।
बहुत खूब कहा! पर इन सबके बिना कविता और कवि पैदा कहाँ से हो ?
ReplyDeletebahut badhiya, umda aur sanjeeda!!!
ReplyDeleteपाषाण ही हैं इधर भी और
ReplyDeleteउधर भी बिखरे हुऐ हम सभी
कुछ कठोर कुछ मुलायम
कुछ सुधरे हुऐ
बहुत सुंदर शब्द परी जी
जीवन के यथार्थ का प्रभावी चित्रण ....मगर अगले मोड़ पर पाषाण होने की ख्वाइश को बदल दीजियेगा ....मंगलकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव.
ReplyDeleteनई पोस्ट : ओऽम नमः सिद्धम
बहुत सुंदर शब्द परी जी...
ReplyDeletefir hume ye sab padhne kaise milega, bahut sundar likha hai
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteआज सच में संवेदनशील इंसान पत्थर ही होना चाहता है ...
ReplyDeleteमन के जज्बात बाखूबी लिखे हैं ...
कलम की दीवानी में रवानी रच गयी |
ReplyDeleteपाषाण बनने की कोई कहानी कह गयी|
आकांक्षाएं इच्छाएं अनवरत बढ़ती गयी|
आबरू आकाश सा साहित्य में उत्तर गयी ||
पाषाण ही हैं इधर भी और
ReplyDeleteउधर भी
..........बहुत सुंदर परी जी
वाह ! क्या बात है ! लेकिन हमने सुना है संवेदनशील पत्थरों के सीने में भी दिल होता है और धडकनें वहाँ भी जज्बातों की लय पर गिनी जा सकती हैं ! सुन्दर चाह और उस चाहत की अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना परी जी......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह क्या बात है .........बेहतरीन पंक्तियाँ .....जात पात के हवाओं ने जिसे छुआ न हो!!!!
ReplyDeletebahut umda prastutui. . its always the pleasure to read your works. Baba bless !!
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन रचना परी जी......
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