ख़्वाबों के
देवताओं की बलि चढ़ाते हैं
अरमानों की चिताओं को तेज़ाब से जलाते हैं
रूह की नब्ज़ पर आरियां चलाते हैं
साँसों में कतरा-कतरा ज़हर घोल जाते हैं
कुचलते हैं हाथी पैर तले नाज़ुक से ज़ज़्बात
ऐतबार के तबस्सुम का खून पी जाते हैं
मनमर्ज़ी की मीनार जबरन अक्स पर बनाते हैं
बना के ज़रा सी बात को बवाल कहर ढ़ाते हैं
मासूम सी शक्ल लिए फिरते हैं फ़ज़ाओं में
अक्सर सीना ठोंक के दावे ये बेहिसाब करते हैं
जिनके साये गहरे तीरगी को भी हैरान करते हैं
अरमानों की चिताओं को तेज़ाब से जलाते हैं
रूह की नब्ज़ पर आरियां चलाते हैं
साँसों में कतरा-कतरा ज़हर घोल जाते हैं
कुचलते हैं हाथी पैर तले नाज़ुक से ज़ज़्बात
ऐतबार के तबस्सुम का खून पी जाते हैं
मनमर्ज़ी की मीनार जबरन अक्स पर बनाते हैं
बना के ज़रा सी बात को बवाल कहर ढ़ाते हैं
मासूम सी शक्ल लिए फिरते हैं फ़ज़ाओं में
अक्सर सीना ठोंक के दावे ये बेहिसाब करते हैं
जिनके साये गहरे तीरगी को भी हैरान करते हैं
बच के रहना की शहर में आज-कल
ऐसे लोग अपने आपको मर्द ज़ात कहते हैं !!
________________________
© परी ऍम.
'श्लोक'
बहुत सटीक लिखी हैं परी जी
ReplyDeleteसादर
जो अत्याचार करे स्त्री पर वोह मर्द कहाँ .....हर एक बिंब शर्मनाक है .....
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (01-02-2015) को "जिन्दगी की जंग में" (चर्चा-1876) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक, सत्य, बेबाक कथन ! वाकई ऐसे लोगों से बच के रहने की सख्त ज़रुरत है !
ReplyDeleteसटीक .. पर ऐसे लोग मर्द कहाँ होते हैं ... धब्बा होते हैं मर्द के नाम पर .. बदनाम करते हैं पूरी मर्द-जात को ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है
ReplyDeleteअति सुंदर |
ReplyDeleteआज 04/ फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बच के रहना रे बाबा!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चिंतनशील रचना
बेहद शानदार चित्रण है ....... प्रगतिशील समाज का
ReplyDeleteरूह की नब्ज़ पर आरियां चलाते हैं
ReplyDeleteसाँसों में कतरा-कतरा ज़हर घोल जाते हैं
बहुत बढ़िया
कुचलते हैं हाथी पैर तले नाज़ुक से ज़ज़्बात
ReplyDeleteऐतबार के तबस्सुम का खून पी जाते हैं
मनमर्ज़ी की मीनार जबरन अक्स पर बनाते हैं
बना के ज़रा सी बात को बवाल कहर ढ़ाते हैं
चित्रों और शब्दों के माध्यम से आपने समाज की जो तस्वीर प्रस्तुत की है परवीन जी , दुखी कर जाती है ! उम्मीद है वक्त बदलेगा !