Thursday, January 15, 2015

अंधी सड़को पर ...


अंधी सड़को पर जिंदगी गुमनाम हुई
सुबह निकले तलाश में तो बस शाम हुई
अपनी आरज़ूओं को मारकर
कई हिस्सों में दफ़न किया
इस बेवफाई की साज़िश भी सरेआम हुई
इसकदर झुलसे सपने पलकों के
देखकर आँखें भी हैरान हुई
कहूँ क्या ? छिपाऊ क्या ? 'श्लोक'
अपनी कुछ ऐसे भी पहचान हुई
भूख से रूह तक शैतान हुई
साँसे कातिलाना कोई औज़ार हुई
हमने जाना जब कि
समेटी हुई कमाई बचपन की
जवानी की दहलीज़ पर आकर बेरोज़गार हुई !!
__________
© परी ऍम. 'श्लोक'

22 comments:

  1. कहूँ क्या ? छिपाऊ क्या ? 'श्लोक'
    अपनी कुछ ऐसे भी पहचान हुई
    भूख से रूह तक शैतान हुई
    क्या बात है !! बहुत खूबसूरत परवीन जी

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  2. nice post :)
    ---------------------http://drpratibhasowaty.blogspot.in/2014/12/6.html ( link 4 ur visit )

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  3. Speechless Pari ji..! bahotahi Sundar aur Marmik shabd ke prayog aapane kiye hai ...!

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  4. Yakjeenan, Koi Shabd shilpi bhi aapki is kavita kee tareef kar pane me asmarth mehsoos kaerga.

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  5. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (17-01-2015) को "सत्तर साला राजनीति के दंश" (चर्चा - 1861)7 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. बेहतरीन पंक्तियाँ

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  7. बहौत ही बढिया समझ एहसास की लहरोपर अहसास अंधी सडकोका... !!!

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  8. सार्थक रचना

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  9. बहुत गहरे भाव लिये ...आप के कलम का जादू बिखेरती हुई रचना .....शुभकामनाएँ

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  10. मर्मस्पर्शी !

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  11. समाज से सवाल करती ,झकझोरने वाली एक अच्छी रचना ,

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  12. भूख से रूह तक शैतान हुई...............सच कहा .............वाह

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  13. बहुत अच्छा लिखती हैं आप !

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  14. बहुत सुन्दर !

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