Sunday, January 4, 2015

हम अपनी हस्ती को बदल लेते हैं


मत चढ़ाओ नकाबों का बोझ चहरे पर
इत्र डालो जिस्म पे कि महके तू
और तेरी खुशबु से आलम सारा

तसल्लियों की गोली खाकर
बिस्तर को नींद की हसीना न दो
सोने का वक़्त नहीं जल्दी उठो
हमारी खुदगर्जी को खबर होने से पहले
आओ अंधेरो में उजाला ढूँढना है
तेरे अंदर तुझे उतरना है मेरे अंदर मुझे
झांकना है रूह के आईने में चेहरा अपना
बचाना है उस किरदार को
जो वक़्त का जहर पी रहा है
इससे पहले की वो नेस्तनाबूद हो जाए
चलो महफूज़ कर लेते हैं कुछ नेकियां

कुछ ही मोहलत है
बदलाव की ताबीज़ पहन लेते हैं
किसी और को नहीं
हम अपनी-अपनी हस्ती को बदल लेते हैं

अभी है वक्त .....संभल लेते हैं !!
___________________
© परी ऍम 'श्लोक'

16 comments:

  1. बहुत सही परी जी, अंधेरो में उजाला ढूँढना है..।।
    उम्दा प्रस्तुति..।।

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  2. कुछ ही मोहलत है
    बदलाव की ताबीज़ पहन लेते हैं
    किसी और को नहीं
    हम अपनी-अपनी हस्ती को बदल लेते हैं
    क्या बात है परवीन जी ! उम्दा

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  3. बहुत खूब ... उजाला ढूंढना ही जीवन है ... बदलाव तो होते रहना चाहिए ... समय रहते संभलना भी जरूरी है ...
    नव वर्ष की मंगलकामनाएं ...

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  4. बहुत सुन्दर .अंधेरों में उजालों को ढूंढना चाहिए.
    नई पोस्ट : बंदिशें और भी हैं

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  5. अंधेरे में रहते रहते उजालों से नफ़रत हो गयी है मुझे,
    अब उजालों की क्या ज़रूरत अंधेरे से मोहब्बत हो गई है मुझे.

    सुंदर और भावविभोर प्रस्तुति .

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  6. बहुत उम्दा !

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  7. बहुत बढ़िया परी जी


    सादर

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  8. वाह !
    मंगलकामनाएं !

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  9. सुन्दर भावों का संचरण करती सुन्दर कविता

    खुदगर्ज इतने की हम कश्ती बदल लेते हैं
    मतलबी यार तो अपनी हस्ती बदल लेते हैं

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  10. परी जी बहुत प्रभावी रचना ...समय रहते बदलना आवश्यक है ....

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  11. जबर्दस्‍त शिल्‍प से संयोजित पंक्तियां। बहुत सुन्‍दर।

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  12. खूबसूरत जज्बे को खूबसूरत शब्द दिए हैं परी जी ! बस इसे अमली जामा पहनाने की कसर बाकी है ! और यह जितना जल्दी हो जाए सबके लिये बेहतर होगा ! बहुत सुन्दर एवं प्रेरक प्रस्तुति !

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  13. जज्बातों को शब्दों में ढालना थोडा मुश्किल होता है पर यहाँ लग रहा है की शब्द एहसास पर भारी हैं।

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