सार्थक प्रस्तुति। -- आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (28-01-2015) को गणतंत्र दिवस पर मोदी की छाप, चर्चा मंच 1872 पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ... सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (28-01-2015) को गणतंत्र दिवस पर मोदी की छाप, चर्चा मंच 1872 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जो पहले था वह भी जिंदगी का हिस्सा था,जो अब है वह भी जिंदगी का हिस्सा है।
ReplyDeleteआपके शब्दों में जिंदगी के विभिन्न रूपों की सुन्दर व्याख्या होती है परवीन जी , और ये शब्द स्वतः ही आकर्षित करते हैं ! बेहतरीन
ReplyDeleteसमय-समय की बात है ! जो मिल गया उसीको मुकद्दर समझ लिया ! बहुत आत्मीय से मिलते जुलते अहसास !
ReplyDeleteपरी जी यथार्थ दर्शाती बेहद सुंदर रचना ...
ReplyDeleteअँधेरे आते हैं बेशक...
मगर सवेरा होने में भी देर नहीं होती....
बहुत सुन्दर भाव लिए अनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDeleteपर आइना तो सच कहता है ... नज़रों का धोखा न हो ये ...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ...
कल 01/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत सुंदर !
ReplyDeletesach kaha pari ji.......bahut baar aisa mehsus hota hai....umda prastuti
ReplyDeletewaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh
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