बर्तनों
पर उलचते हैं पानी
मेजों
की आबरू का ख्याल करते हैं
शीशे
की दीवारों पर एक निशान नहीं चमकता
फर्श
पर जड़े पत्थर आईना से नज़र आतें हैं
कालिख
में नहाये हुए कारों को साफ़ करते
पुर्जा-पुर्जा खोलते बांधते..
कहीं हाथ फैलाये बाज़ारों में
खुलेआम भिनभिनाते हुए
कहीं हाथ फैलाये बाज़ारों में
खुलेआम भिनभिनाते हुए
उम्र
और कद से कई फर्लांग आगे
पेशानी
पर बेबसी की लकीरें गाड़े
सपनों
पर बेउम्मीदी की मैल चिपकाए
हसरतों
का कटा फटा जामा पहने
आँखों
में तल्ख जाम छुपाये हुए
ज़िन्दगी
की लम्बी रेस में दौड़ते
हुए
ये नन्हे घोड़े ...
जिनके
दूध के दांत नहीं टूटे
अफ़सोस...
मेरे मुल्क के बच्चे हैं !!
_______________
© परी ऍम. 'श्लोक'
कालिख में नहाएं कारो को साफ़ करते
ReplyDeleteपुर्जे-पुर्जे खोलते बांधते..कहीं हाथ फैलाये
बाज़ारो में खुलेआम भिनभिनाते हुए
उम्र और कद से कई फर्लांग आगे
पेशानी पर बेबसी की लकीरे गाड़े
सपनों पर ना-उम्मीदी की मैल चिपकाए
बदलते वक्त की निशानियाँ हैं ये परवीन जी ! सार्थक लिखा है आपने
वाह...
ReplyDeleteबहुत सही वर्णन किया है.... इन नन्हे घोड़ो का .... कब सबको अधिकार मिलेगा पाठशाला जाने का ....शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत बढ़िया परी जी
ReplyDeleteसादर
सुंदर रचना परी जी, वास्तविकता को बयां करती..।।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.आजीविका कमाने की जद्दोजहद में बालपन कहीं खो सा गया है.
ReplyDeleteनई पोस्ट : मन का अनुराग
बहुत सुंदर ..
ReplyDeleteआप कहोगे यह तो भगवानकी बाते है पर सच हो तो गौर कीजियेगा यही भारत भूमि पर भगवान श्री कृष्ण जी ने जन्म लिया 'था' और मासी पूतना को अपने धाम पठाया।
ReplyDeletekya baat hai..jajawab...
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना ! वाकई क्या सचमुच ये ही बच्चे हमारे देश का भविष्य है ? चिंतनीय रचना !
ReplyDelete.........कालिख में नहाएं कारो को साफ़ करते......ये गऱीबी ही है जो बच्चो को भी इतनी तपती धुप और कड़ाके की ठण्ड में भी कभी बसो में मूंगफली बेचने तो कभी होटलों पर वर्तन साफ़ करने को मजबूर करती है
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना आपकी
क्या खूब महसूस किया है आपने मासूम कामकाजी बच्चों रोजमर्रा की जिन्दगी को.... दिली मुबारकबाद !!!
ReplyDeleteसंवेदनशील ... पर सच पूछो तो इनमें इनका कोई कसूर नहीं ... देश के कर्णधारों की जिम्मेवारी है इनकी मुस्कान और हालात में सुधार करना ... भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteआपकी बढियां रचनों में से एक , बड़ी ही संजीदगी से लिखा है, शुभकामनायें !
ReplyDeleteउत्तम रचना
ReplyDeleteएक भावपूर्ण और मार्मिक रचना।
ReplyDeleteआवश्यकता है बस के हम अपने अन्दर के कैलाश सत्यार्थी को जगाये और अपना हरसंभव योगदान दे| आपके लेखनी मे बहुत ओज है,मेरा नमन है आपको ! बसंत पंचमी कीशुभकामनायें !
ReplyDeleteअपनी ही कमीज से आपके पैरों के नीचे से वो गंदगी साफ करते है जो आपने फैलायी है . . . नन्हें नन्हें हाथों से जूते चमकाते हैं आपके . . वो कांधे पर बस्तों की जगह बोरो में कूड़ा बिनते है . . माँ की छाती से चिपटे रूकी हुई गाड़ियों में बैठी माँओ से अपने लिए दया की उम्मीद लगाते है . . सम्पन्न बच्चों के जूतों के फीते बाँधते हुए अपने लिए भगवान से अगले जन्म में उन जैसे भविष्य की कामना करते है. . . . गुड्डे गुड़ियों से खेलने की उम्र में सचमुच माँ बन जाती है कभी ढेर सारे भाई बहनों की और फिर बचपन में ही अपने बच्चों की . . .
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