Tuesday, January 20, 2015

अफ़सोस


बर्तनों पर उलचते हैं पानी
मेजों की आबरू का ख्याल करते हैं
शीशे की दीवारों पर एक निशान नहीं चमकता
फर्श पर जड़े पत्थर आईना से नज़र आतें हैं
कालिख में नहाये हुए कारों को साफ़ करते
पुर्जा-पुर्जा खोलते बांधते..
कहीं हाथ फैलाये बाज़ारों में
खुलेआम भिनभिनाते हुए
उम्र और कद से कई फर्लांग आगे
पेशानी पर बेबसी की लकीरें गाड़े
सपनों पर बेउम्मीदी की मैल चिपकाए
हसरतों का कटा फटा जामा पहने
आँखों में तल्ख जाम छुपाये हुए

ज़िन्दगी की लम्बी रेस में दौड़ते हुए
ये नन्हे घोड़े ...
जिनके दूध के दांत नहीं टूटे

अफ़सोस... मेरे मुल्क के बच्चे हैं !!
_______________
© परी ऍम. 'श्लोक'

18 comments:

  1. कालिख में नहाएं कारो को साफ़ करते
    पुर्जे-पुर्जे खोलते बांधते..कहीं हाथ फैलाये
    बाज़ारो में खुलेआम भिनभिनाते हुए
    उम्र और कद से कई फर्लांग आगे
    पेशानी पर बेबसी की लकीरे गाड़े
    सपनों पर ना-उम्मीदी की मैल चिपकाए
    बदलते वक्त की निशानियाँ हैं ये परवीन जी ! सार्थक लिखा है आपने

    ReplyDelete
  2. बहुत सही वर्णन किया है.... इन नन्हे घोड़ो का .... कब सबको अधिकार मिलेगा पाठशाला जाने का ....शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  3. बहुत बढ़िया परी जी

    सादर

    ReplyDelete
  4. सुंदर रचना परी जी, वास्तविकता को बयां करती..।।

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर रचना.आजीविका कमाने की जद्दोजहद में बालपन कहीं खो सा गया है.
    नई पोस्ट : मन का अनुराग

    ReplyDelete
  6. आप कहोगे यह तो भगवानकी बाते है पर सच हो तो गौर कीजियेगा यही भारत भूमि पर भगवान श्री कृष्ण जी ने जन्म लिया 'था' और मासी पूतना को अपने धाम पठाया।

    ReplyDelete
  7. बहुत संवेदनशील रचना ! वाकई क्या सचमुच ये ही बच्चे हमारे देश का भविष्य है ? चिंतनीय रचना !

    ReplyDelete
  8. .........कालिख में नहाएं कारो को साफ़ करते......ये गऱीबी ही है जो बच्चो को भी इतनी तपती धुप और कड़ाके की ठण्ड में भी कभी बसो में मूंगफली बेचने तो कभी होटलों पर वर्तन साफ़ करने को मजबूर करती है
    बहुत अच्छी रचना आपकी

    ReplyDelete
  9. क्या खूब महसूस किया है आपने मासूम कामकाजी बच्चों रोजमर्रा की जिन्दगी को.... दिली मुबारकबाद !!!

    ReplyDelete
  10. संवेदनशील ... पर सच पूछो तो इनमें इनका कोई कसूर नहीं ... देश के कर्णधारों की जिम्मेवारी है इनकी मुस्कान और हालात में सुधार करना ... भावपूर्ण रचना ...

    ReplyDelete
  11. आपकी बढियां रचनों में से एक , बड़ी ही संजीदगी से लिखा है, शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  12. एक भावपूर्ण और मार्मिक रचना।

    ReplyDelete
  13. आवश्यकता है बस के हम अपने अन्दर के कैलाश सत्यार्थी को जगाये और अपना हरसंभव योगदान दे| आपके लेखनी मे बहुत ओज है,मेरा नमन है आपको ! बसंत पंचमी कीशुभकामनायें !

    ReplyDelete
  14. अपनी ही कमीज से आपके पैरों के नीचे से वो गंदगी साफ करते है जो आपने फैलायी है . . . नन्हें नन्हें हाथों से जूते चमकाते हैं आपके . . वो कांधे पर बस्तों की जगह बोरो में कूड़ा बिनते है . . माँ की छाती से चिपटे रूकी हुई गाड़ियों में बैठी माँओ से अपने लिए दया की उम्मीद लगाते है . . सम्पन्न बच्चों के जूतों के फीते बाँधते हुए अपने लिए भगवान से अगले जन्म में उन जैसे भविष्य की कामना करते है. . . . गुड्डे गुड़ियों से खेलने की उम्र में सचमुच माँ बन जाती है कभी ढेर सारे भाई बहनों की और फिर बचपन में ही अपने बच्चों की . . .

    ReplyDelete

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!