धूप
है
न झड़ी ओस की
दिन
के जिस्म से उठता हुआ
धुँआ भी नहीं
बर्फ
की बौछार है
न रूखापन फ़ज़ाओं में
निगाहों
के आस-पास
हरा-भरा है मंज़र
काले
दुपट्टे से
कुछ बूँदें टपक रही है
गुलाबी
जमीन
और भी गुलाबी हो गयी है
हवाओ
का तन भीगा-भीगा सा है
आज
मेरे शहर का मौसम गीला सा है
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© परी ऍम. 'श्लोक'
Sheet Ritu me Barsaat ho gayi aakhir.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर . मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteनई पोस्ट : गुमशुदा बौद्ध तीर्थ
गरारा मौसम का आज ढीला हो गया
ReplyDeleteसर्द मौसम भी बेहद रंगीला हो गया
ये कुदरत भी नाय़ाब करिश्मा है दोस्तों
के देखते ही देखते शहर गीला हो गया
अज़ीज़ जौनपुरी
वाह परी जी वाह ...जिस नजाकत से आप ने बयां किया है शहर का मौसम ...बहुत सुंदर
ReplyDeletewah bahut bahut sundar rachna
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ............आज मेरे शहर का मौसम गीला सा है
ReplyDeleteभीगता भी कैसे मन तो पहले से गीला हुआ है।
ReplyDeleteसर्द रचना।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-01-2015 को चर्चा मंच पर दोगलापन सबसे बुरा है ( चर्चा - 1859 ) में दिया गया है ।
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह ! बहुत ही भीगा भीगा सा मौसम है और भीगी भीगी सी आपकी रचना है जो हमें भी भिगो गयी ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया परी जी
ReplyDeleteसादर
आ हा गजब....
ReplyDelete'मतलब कि मौसम परी सा हुआ है'
काले दुपट्टे से
ReplyDeleteकुछ बूँदें टपक रही है
गुलाबी जमीन
और भी गुलाबी हो गयी है-----
मन को मसोसता महीन अहसास
मन को छूती अभिव्यक्ति -----
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ...
मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!
sundar shubhkamnaye :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमकर संक्रान्ति की शुभकामनायें
शहर प्रेम की नमी में डूबा है ... इसलिए गीला है ... बहुत खूब लिखा है ...
ReplyDeleteबेहद भावनात्मक रचना है ।बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबेहद भावनात्मक रचना है ।बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही भीगा भीगा सा मौसम है
ReplyDeleteबर्फ की बौछार है
ReplyDeleteन रूखापन फ़ज़ाओं में
निगाहों के आस-पास
हरा-भरा है मंज़र
काले दुपट्टे से
कुछ बूँदें टपक रही है
बेहद भावनात्मक रचना है ।बहुत सुन्दर
वाह आज मेरे शहर का मौसम गीला सा 1....बहुत सिंदर !!
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