उसने
मुसलसल कई गुनाह किये
और अक्सर
कहता रहा मेरी खता क्या है
उसे
मालूम नहीं शायद
चोरी
गुनाह है और देखो
उस अनाड़ी
ने चुपके से मेरा दिल चुरा लिया
आफ़ताब से
भी तेज़ था उजाला उसका
कि उसने मेरे
जिस्म का साया हथिया लिया
उसे
मालूम नहीं शायद
धोखा-धड़ी
गुनाह है
उसने
ऐतबार के मंदिर में
प्यार का
फूल चढ़ाया और कई कसमें खाई
लव्ज़ दर
लव्ज़ वादा किया
और बिना
आहट बिना आवाज़ के गुज़र गया
उसे
मालूम नहीं शायद
कि क़त्ल
की बड़ी सज़ा मुक़र्रर है
उसने
अपने हाथों से रात की गवाही में
चाँद का
नूर लेकर टिमटिमाती तन्हाई में
कई
जिन्दा ख़्वाब मेरे आँखों की शीशी में भरे
और सुबह
होते-होते बड़ी बेरहमी से उसे
ज़मीन पर
पटक कर चकनाचूर कर दिया
मैंने
सबूत के क़ागज़ाद नहीं बटोरे
मगर मेरा
गमज़दा वज़ूद इस बात की गवाही है
कि
उसने
मुसलसल कई गुनाह किये
और अक्सर
कहता रहा मेरी खता क्या है
© परी
ऍम. श्लोक
सुन्दर रचना परी जी
ReplyDeleteउसे मालूम नहीं शायद
ReplyDeleteकि क़त्ल की बड़ी सज़ा मुक़र्रर है
उसने अपने हाथों से रात की गवाही में
चाँद का नूर लेकर टिमटिमाती तन्हाई में
कई जिन्दा ख़्वाब मेरे आँखों की शीशी में भरे
और सुबह होते-होते बड़ी बेरहमी से उसे
ज़मीन पर पटक कर चकनाचूर कर दिया
इश्क की परिभाषा यही होती है ! सुंदर काव्य परी जी