उस लम्हें के गुज़र जाने
के बाद
अतराफ़ ये सन्नाटा पसर
जाने के बाद
मेरा मासूम दिल जब
सितारों की शब में
अपने गिरेबाँ की
सीढ़ियाँ उतरा
तो बुझा हुआ मुहब्बत का
चेहरा देख
उसे इस बात का बेहद
अफ़सोस हुआ
कि ज़रा सी कहा -सुनी
में खफ़ा होकर
वो तुम्हारा दिया
तोहफ़ा
जो मुझे अपनी जाँ से
अज़ीज़तर था
कितनी बेरहमी से उस
रोज़
गुस्से की धधकती
हुई
इक पल के आतिश-दाँ में
झोंक आई थी
मुझे ज़रा भी इल्म न
था
जन्मों के रिश्तें पल -
भर में खाक़ नहीं होते
एक सदी, एक उम्र , एक
जिंदगी मिट जाती है
इक निशान दिल से
मिटाते-मिटाते।
__________________
© परी ऍम.
"श्लोक"
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteतारीफ़ के लिए शब्द कम पड. जायेंगे !!
एक बेह्तरीएन अहसास !! दाद !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअतीत से उठ आते कुछ पल .... बहुत मार्मिक रचना हुई है ...
ReplyDeleteएक सदी, एक उम्र , एक जिंदगी मिट जाती है
इक निशान दिल से मिटाते-मिटाते।
बढ़िया पंक्तियाँ
ReplyDeleteकृपया यहाँ भी पधारिये
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कितनी बेरहमी से उस रोज़
ReplyDeleteगुस्से की धधकती हुई
इक पल के आतिश-दाँ में झोंक आई थी
मुझे ज़रा भी इल्म न था
जन्मों के रिश्तें पल - भर में खाक़ नहीं होते
बहुत ही सुन्दर और सार्थक पंक्तियाँ परी जी !! ऐसे विषय पर आपकी लेखनी बहुत दमदार शब्द लिखती है !!
आप की पक्तियों के धन्यवाद जरा यहाँ भी -
ReplyDeleteतालीम किसको कौन जानता ,
जो दिया उसने उसे ही मानता |
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बहुत सुंदर प्रस्तुति परि जी ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteक्रोध सच में विवेक को खा जाता है. और असल ज़िंदगी में undo बटन तो है नहीं, कि दबाया और करनी को फेर दिया...
ReplyDeleteइस रचना की भावना में सच्चाई है. निश्छल अभिव्यक्ति.