Sunday, August 3, 2014

कवि की कसक

तू भी कवि है
मैं भी कवि हूँ
कलम तेरी तलवार
श्याही मेरी भी लहू है
शब्द तेरे भी भीगे
अल्फ़ाज़ मेरे भी कोमल
भाव तेरे भी तीखे
अभिव्यक्ति में मेरे भी तेवर
जहन तेरा भी जिन्दा
सोच में मेरे भी जुनूँ है
तू भी है विरोधी
और मैं भी बागी हूँ

फर्क नहीं
तेरे और मेरे ओंदे में
लेकिन
बस फर्क इतना है.....
तेरी कविताएं
किताबो और अखबारों में छप गयी
और
मेरी डायरी में पड़े पड़े फट गयी
तुम्हारी बड़े मंचो पर सराही गयी
मेरी तन्हाईओं में उड़ाई गयी
तुम्हारी अभिव्यक्ति को
सबने पढ़ा और जाना
मेरी अभिव्यक्ति को मैंने पढ़ा
और बस मैंने जाना
तेरी आवाज़ गूंजी
और मेरी आवाज़ को
डायरी के पन्नो में
दफ़न कर दिया गया !!!


------------------- परी ऍम श्लोक

7 comments:

  1. एहसास हैं तो क्या फर्क पड़ने वाला है ... पढने न पढने से दिल तो नहीं बदलता ...

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  2. बहुत प्यारा लिखा आपने

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  3. फर्क नहीं
    तेरे और मेरे ओंदे में
    लेकिन
    बस फर्क इतना है.....
    तेरी कविताएं
    किताबो और अखबारों में छप गयी
    और
    मेरी डायरी में पड़े पड़े फट गयी
    तुम्हारी बड़े मंचो पर सराही गयी
    मेरी तन्हाईओं में उड़ाई गयी
    तुम्हारी अभिव्यक्ति को
    सबने पढ़ा और जाना
    मेरी अभिव्यक्ति को मैंने पढ़ा
    सुन्दर पंक्तियाँ

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  4. मन में आग का होना ज़रूरी है ! पता नहीं किस पल में एक नन्ही सी चिंगारी दावानल बन जाए ! बहुत सुन्दर रचना !

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  5. केवल अख़बार में छप जाने से अभिव्यक्ति पूर्णता को प्राप्त नहीं होती. यह एक सतत प्रक्रिया है. जो अपनी पीड़ा गा सकता है वही अन्य की पीड़ा को भी स्वर दे सकता है. अभिव्यक्ति अपनी पूर्णता को प्राप्त कर लेती है जब वह किसी के घाव का मरहम बन जाती है. सुंदर कविता.

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  6. बहुत सुन्दर रचना

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  7. बहुत ही सुंदर ...

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