Wednesday, August 20, 2014

तुम्हारे लम्स को छूकर ......


तुम्हारे लम्स को छूकर
उसकी खुश्बुओ में मैंने महसूस किया है
मोहोब्बत की गर्माहट.......
कभी इस आँच में सुलगता है तू
तो कभी इस तपन से जलती हूँ मैं ..

अनकही बातो के जंगल में
बेसब्री के तूफानों से शोर मचा
चुप्पियाँ तोड़ने से पहले
सो सवाल उठते-बैठते रहे
किसी भी करवट में
सकून का होना दुश्वार हो गया

खिलाफत धड़कनो ने भी कर दी है 
मेरी हुकूमत मेरी हकदारियां
मेरा ही दिल जब्त कर लिया तुमने

अब दिल तेरी सल्तनत है
और तू इसका सुल्तान  
तुम्हे महसूस करके
एहसास के फुव्हारो से
भीग जाती हूँ मैं रूह तक
बेरंग जिंदगी की शाखों में रोशनी
और कई रंग उतर जाते है

तेरा जिक्र कभी तन्हाईयो से करती हूँ
कभी बहती पुरवाइयो से
तुम मेरे सोच की अमीरी बन गए हो
एक ऐसा खजाना
जिसे न तो चुराया जा सकता है
और न मिटाया !!

_______________परी ऍम 'श्लोक'

5 comments:

  1. बहुत ही खूबसूरत !

    सादर

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  2. एहसास के धागे में पिरोई बहुत सुन्दर रचना

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  3. भीगते एहसासों की खूबसूरत अभिव्यक्ति

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