Saturday, August 30, 2014

जाओ लगाती हूँ प्रताड़ना के अध्याय पर विराम!


आखिर कब तक
ताना मारोगे
धमकी दोगे
अपनी बेतुकी बात से
डराओगे मुझे
"ज्यादा बोलेगी तो छोड़ दूँगा..
ऊँची आवाज़ में बात किया तो
भगा दूँगा घर से
अगर कल नहीं आई
मायके में ही रहना
ता-उम्र छोड़ दूँगा..
खाना ढंग से बनाया कर
वरना भेज दूँगा तेरी माँ के पास
तुझे छोड़ दूँगा..
सड़क पर भीख मांगेगी
अगर मैं तुझे छोड़ दूँगा..
चाहे मैं मारू या पीटू
जो भी गति बनाऊँ
तुझे सहना ही है
वरना छोड़ दूँगा..
सुबह और शाम ...
बस यही कहते हो
छोड़ दूँगा..छोड़ दूँगा...छोड़ दूँगा
आह !
बस बहुत हुआ
अब तुम्हारे इस धमकी को
यहीं पर ख़त्म करती हूँ
तुम्हारी तकलीफ का यही अंत
मेरा भाग्य यही से बदल लेती हूँ
इस पिंजरे को तोड़ देती हूँ
अँधेरा मिटा देती हूँ भय का
बस अति हो गयी है

तुम क्या मुझे छोड़ोगे?
मैं ही तुम्हे आज़ाद करती
जाओ मुझे
मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना देने कि
अब नौबत नहीं आएगी
बस

तलाक ... तलाक ... तलाक !!!

_____________परी ऍम 'श्लोक'


(मैं उन औरतो से ज़रूर गुजारिश करती हूँ कि अपराध को सहने वाला भी बड़ा अपराधी होता है मैं बस इतना कहूँगी अगर दम है तो हवा का रुख मोड़ दो या फिर इस हवा के साथ बह जाओ..या फिर ठहर जाओ .. ख़त्म करो घरेलु हिंसा का प्रचलन .. अहसास करो तुम केवल दुसरो के सकून के लिए नहीं .. बल्कि खुद भी सकून भर जीने के लिए बनी हो)

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