Thursday, August 21, 2014

पर कभी-कभी ....

समझ नहीं आ रहा था
किसको ज्यादा तवज्जु दूँ
भाई के खिलौने के टूटने को
या किसी अद्भुत
सपने के पाश-पाश होने को
चुनाव बहुत मुश्किल हो जाता है
जब भावनाओ के कैनवास पर
कोई मनचाहा
चित्र उभर जाए तो फिर
लेकिन जब जिम्मेदारियां
कांधो पर चढ़ बैठती हैं
तो अपनी ख़ुशी कहीं दब जाती हैं
हम खो जाते हैं इस गुबार में
नज़र आता है तो बस
उन अपनों कि तमाम ख्वाइशें
जिन्हे पूरा करने में
अलग ही सकून का अनुभव होता है
और जिनके मुस्कान के झरनो में 
धुल जाते हैं हर अवसाद
परन्तु कभी-कभी
अफ़सोस पनप जाता है
जब किया हुआ समर्पण
अपेक्षाओं कि इस बड़ी मण्डी में
बेभाव... बेकार....रह जाता है
जिनको पूरा करते हुए
जाने कितनो ही
आरज़ूओं को
गिरवी रख दिया गया हो !!


_______________परी ऍम 'श्लोक'
 

2 comments:

  1. जिनको पूरा करते हुए
    जाने कितनो ही
    आरज़ूओं को
    गिरवी रख दिया गया हो !!...
    BAHUT UTTAM

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  2. हम खो जाते हैं इस गुबार में
    नज़र आता है तो बस
    उन अपनों कि तमाम ख्वाइशें
    जिन्हे पूरा करने में
    अलग ही सकून का अनुभव होता है
    और जिनके मुस्कान के झरनो में
    धुल जाते हैं हर अवसाद
    परन्तु कभी-कभी
    अफ़सोस पनप जाता है
    जब किया हुआ समर्पण
    भावपूर्ण रचना

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