Monday, August 11, 2014

"नारी सबला है"

मुझे फलक
तक जाने की आरज़ू थी
मैंने बेड़ियां तोड़ी
किन्तु मर्यादा बनाये रखी
पर घर से बाहर
कदम निकालते ही
घृणित पुरुषो ने पीछा किया
लेकिन मैं भी रुकी नहीं
उनसे फब्तियां कसी
मेरा मनोबल तोड़ने को
लेकिन मैं 
डरी और सहमी नहीं
मैंने धुएं में उड़ा दिया
उसे अहंकार था
अपने पुरुष होने पर
अपनी ताकत पर
इसलिए ही शायद
वो उसे आजमाने की
कोशिश कर रहा था
मुझे असहाय समझ के 
बात हद तक रहती
तो मैं भी चुप रहती
क्यूंकि माँ अक्सर कहती है
कुत्ते यदि भोंके तो
हाथी की तरह
मस्त होकर गुजर जाना
पर
वो अपनी भेड़िये की
औकात पे आया
उसने दुपट्टा खींचा
मैं जिद्द में आई
गुस्से में आग बबूली हो गयी
उठाया तमाचा
और
जड़ दिया गाल पे
छाप दिए उसका इनाम
उसके मुँह पर 
थूक दिया उसके चहरे पर
थूकदान से ज्यादा
मेरी नज़र में
नहीं है उसकी हैसियत
साथ ही बता दिया की
नारी कमज़ोर नहीं है
यदि नारी में हद से ज्यादा
सहन की क्षमता है
जो तुम्हारी नीचता को सह सके 

तो सुनो !
उसमे आक्रोश की
ज्वालामुखी भी सीमाहीन है !!


______________________परी ऍम 'श्लोक'

6 comments:

  1. क्यूंकि माँ अक्सर कहती है
    कुत्ते यदि भोंके तो
    हाथी की तरह
    मस्त होकर गुजर जाना
    पर
    वो अपनी भेड़िये की
    औकात पे आया
    उसने दुपट्टा खींचा
    मैं जिद्द में आई
    गुस्से में आग बबूली हो गयी
    उठाया तमाचा
    और
    जड़ दिया गाल पे
    छाप दिए उसका इनाम
    उसके मुँह पर
    यही जरुरी है आजकल ! सार्थक और प्रभावी

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  2. नारी अगर चाहे तो वो चंडी भी है ... शेरनी भी है ....
    जैसा माहोल है नारी को बन के दिखाना ही होगा ...

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  3. सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति

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  4. बेहतरीन जोश और जज़्बा लिए सुन्दर अभिव्यक्ति आपकी

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  5. मैंने बेड़ियां तोड़ी
    किन्तु मर्यादा बनाये रखी ...जैसा माहोल है नारी को बन के दिखाना ही होगा ...

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