Tuesday, August 12, 2014

"मानवता का अलाव"

समाज में हो रही है
वही घटनाएं निरंतर
यदि बदला है तो सिर्फ
दिन.. तारीक...साल
और कानून कि धाराएं

अनगिनत हाथो से जलती है
शान्ति और इन्साफ की कामना
कि वो लौ
कहना मुश्किल है
इनमे कितने हाथ ऐसे होंगे
जो खुद ऐसे अपराधो को अंजाम देते हैं
क्यूंकि चहरे पर नहीं लिखा होता
किसी के सोच की भाषा
उस भीड़ में शामिल हो जाते हैं
कुछ प्रतिशत अच्छे लोगो के साथ
भेड़िये ... गिद्ध और कुकुर....

लेकिन फिर
चौराहे पर जलायी हुई
मोमबत्तियाँ बुझते ही
ख़त्म हो जाता है
एक पीड़ादेह अध्याय
अगला पन्ना पलटते ही मिलती है
फिर से निर्भया
वही सब कुछ सहती हुई
होता है फिर वही घिनौना कृत्य
किसी दूसरे स्थान पर
दूसरे ही पल

तुम ही बताओ ...
क्या ये मानवता है ?
ये नैतिकता है ?
और क्या ये सुधार है ? छी...

अपराध का
अँधेरा तो आज भी कायम है

सुनो !
जागो इक बार... करो विरोध
जब भी देखो ऐसा दुस्साहस

धृतराष्ट्र मत बनो..
मत शय दो
कलयुग के दुर्योधनो को
मत बनो गंधारी हे नारी

चौराहो ने नहीं मांगी है
जली हुई मोमबत्तियाँ तुमसे
अगर जलाना है तो जलाओ
अपने भीतर अच्छी मानसिकता
और मानवता का अलाव
नारी के प्रति सम्मान का  दीपक  !

_______________________परी ऍम श्लोक

3 comments:

  1. बहुत सटीक अभिव्यक्ति...

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  2. बहुत ही खूबसूरती से वेदना व्यक्त की है आपने ... दर्द झलक रहा है शब्दों में ...

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  3. अगर जलाना है तो जलाओ |
    अनगिनत हाथो से जलती हुई,
    मोमबत्तियाँ ||
    शान्ति और इन्साफ की कामना|
    नारी के प्रति सम्मान का दीपक ||

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