Wednesday, August 6, 2014

सम्बन्धो का सेतु

झूठा सा भान हुआ था
कि रेत का
सहरा हो गया है
दिल !
 
बंज़र...बदहवास..
सूख के चटक चुके है
जज्बात !
 
मिट चुका है
जीवन के अध्याय से
तुम्हारे होने
और न होने का अर्थ !
 
पर तुम्हारी याद के बाद
आँखों में उतरी
जो सुनामी मैंने देखी
वो गलतफहमियों को
अपने साथ बहा ले गयी !
 
यकीन मानो
मैंने पुरे शिद्दत के साथ
फैसलों का पहाड़ उठाया था
संतोष का खुराक लेकर
काट रही थी समय !
 
लेकिन फिर
स्नेह कि चासनी से
लबालब भरे उन यादो ने
मुझे लालच में डाल दिया
अपने ही फैसले पर
कमज़ोर पड़ने लगी हूँ मैं !
 
सोचती हूँ
कह दूँ तुम्हे
एक बार फिर
कि लौट आओ!

जिन अहसासों के जंगल में
गुस्से कि आग मैंने लगायी थी
वो सावन कि
रिमझिम बूंदो ने बुझा दी है !
पर अब कहाँ रहा उचित
ये कहने को.....

अब जब टूट गया है
सम्बन्धो का सेतु
तो कैसे मिल सकते हैं भला
प्रेम लिए दो किनारे !!

6 comments:

  1. यथार्थ के कठोर धरातल पर सहमते सकुचाते एहसासों की भीगी सी अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !

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  2. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  3. कल 08/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. mukammal hai ... lajawab hai....tareefe-kabil :)

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  6. जिन अहसासों के जंगल में
    गुस्से कि आग मैंने लगायी थी
    वो सावन कि
    रिमझिम बूंदो ने बुझा दी है !
    पर अब कहाँ रहा उचित
    ये कहने को.....बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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