Monday, September 8, 2014

"ऐसे में इंसान कविता नहीं लिखता"

साफा न हो अच्छे रिश्तो का
कमीज खुशियो की चिथड़ी हो
जब मेहनत करके भी
पूरा न कर पाये घर खर्च 
संगिनी बिस्तर पर बीमार पड़ी हो 
कर्ज में डूबा हो गर्दन तक
बच्ची भूख से तड़प रही हो

ऐसे में इंसान
कविता नहीं लिखता
बल्कि उनकेरता है
स्वयं की संतुष्टि के लिए
पृष्ठभूमि पर अपनी ही आत्म कथा
घुमावदार शब्दों में

ताकि
अकेले ही जो वो
तमाम तकलीफो से जूझ रहा है
निकाल सके उसकी भड़ास
और
आगे फिर से सामना
करने के लिए तैयार हो सके
नए दिन के साथ आने वाली
नयी मुश्किलो के लिए !!


__________परी ऍम 'श्लोक'
 

7 comments:

  1. ऐसे में इंसान
    कविता नहीं लिखता
    बल्कि उनकेरता है
    स्वयं की संतुष्टि के लिए
    पृष्ठभूमि पर अपनी ही आत्म कथा
    घुमावदार शब्दों में
    sahi kahaa aapne

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  2. सुंदर कविता दिल की गहराईयों मे उतरने वाली, साभार! आदरणिया परी जी!
    धरती की गोद

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