Sunday, May 11, 2014

"अब असंभव है"


तुम्हारे लबो से
टपकते प्रेम रस
मुझे किसी षड्यंत्र का
आभास करवाते हैं....

हाँ !
ये सही है कि
जागती हैं भावनाये मुझमे
लेकिन हमने इन भावनाओ को
आँखे सौप दी हैं

इनसे कुछ भी छिप पाना
अब मुमकिन नही है...

देखो हम नीम है
तीत हैं....
और शहद कितना भी डालो
मुझे मीठा कर पाना
सम्भवता अब असंभव है !!


रचनाकार: परी ऍम 'श्लोक'

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