Wednesday, May 28, 2014

"राहें-मंज़िले"


ये राहें कहती है
मत चलो..
है बहुत से हेर-फेर दिशाओ में
भटक जाओगे वरना
कंकड़-पत्थर मेरे शरीर पर
तुम्हे रह-रह के चुभते रहेंगे
पड़ेंगे फफोले तुम्हारे गुदगुदे पाँव में
और तुम्हारे आँसुओ का बोझ
मुझे अनाहक में उठाना पड़ेगा
सुनो ! बहुत मुश्किल है सफर
तय मत करो....
ये रहे कहती है
मत चलो..
मगर मंज़िले मुझे इशारा कर रही है
आवाज़ देती है...बुलाती है
बार बार ये कहकर कि
वो मेरा मुकाम है
मेरी तकलीफो को
अपनी इक फूंक से उड़ा देती है
फिर क्या ?
मैं दौड़ पड़ती हूँ
मंज़िलों को अपने गिरफ्त में
लेने कि चाहत में
उस पल मैं कुछ नहीं सुनती
न सज़ा न वज़ह
सुनती हूँ तो बस
उस मुकाम कि आवाज़
जो मुझे कभी सोने नहीं देता
और जलती हुई उम्मीद
जो अपनी आँच से
मेरी कोशिश को मुझमे जलाये रखती है
न मुझे बुझने देती है
और न ही मुझे रुकने देती है !! 



रचनाकार: परी ऍम 'श्लोक'

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!