Monday, May 26, 2014

!! गम.........!!

छटाक भर आंसुओ में डूबने का गम
कभी उस प्यारे सितारे के टूटने का गम...

खुद ही पानी में कागज़ की कश्तियाँ उतारना
फिर महसूस करना उसके डूबने का गम..

कभी पा लेना कुछ औकात से ज्यादा
कभी सब्र से भी ज्यादा खो देने का गम..

जला तो लूँ मैं आंधियो में भी दिया 'श्लोक'  
मगर फिर साथ अंधेरो का छूटने का गम...

जाकर उतर जाऊं मैं बलखाती लहरो पे
मगर फिर पत्थरो से टकराकर लौटने का गम...

कबूल कर लूँ जो गुलाब तेरे हाथो में हैं
मगर फिर वक़्त की लू में इसके सूखने का गम...

किसी पर यकीन कर लूँ कभी दिल कहता है मुझसे 
मगर फिर इस ऐतबार के टूटने का  का गम...

सोचती हूँ इसी मंज़िल पे आशियाँ बना लूँ
मगर फिर इक जैसे ही मंज़र में घुटने का गम...

लगती है मोहोब्बत तो मुझको भी अच्छी
मगर फिर हर इम्तिहान से जूझने का गम...


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक' 

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