Thursday, May 29, 2014

ग़ज़ल ने ग़ज़ल कहा

सुनो ! कल ग़ज़ल ने इक ग़ज़ल कहा मुझसे
लव्ज़ों के कई मायने बदल-बदल कहा मुझसे

कहने लगी 'श्लोक' ये तेरा मुकाम नही हैं
दामन को खींच कर आगे चल कहा मुझसे

होती हैं खतायें तो जीवन के रहगुजर में
इससे सीख इंसान बन जाता है संदल कहा मुझसे

कितनी उम्मीद बांधे है ज़मीन जो ये प्यासी है
बन जा कभी सागर कभी बादल कहा मुझसे

क्या हुआ जो नहीं ढला इक सपना हकीकत में
इन सपने के चेहरों को बदल कहा मुझसे..

सुनो ! कल ग़ज़ल ने इक ग़ज़ल कहा मुझसे.....


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

No comments:

Post a Comment

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!