Friday, September 26, 2014

प्रेम के पात्र नहीं...सिर्फ घृणा के पात्र हो तुम

आज मुझे फ्रेंड रिक्वेस्ट आई यह कोई पहली बार नहीं था आती रहती है इक दिन तो किसी ने ऐसी कम्युनिटी में ऐड करने कि रिक्वेस्ट भेजी कि कि दिल किया उसके मुँह पर सीधा थूक दूँ लेकिन मेरी थूक भी इतनी सस्ती नहीं सो मैंने उसे ब्लॉक कर दिया......किसी को एकदम ऐड करने से पहले इक बार उसकी प्रोफाइल पर गौर तो फरमाना पड़ता है न ... जैसे कि औरत के नाम पर असहजता स्वाभाविक है.... और आज कल ज्यादातर लोग अच्छे नहीं होते ......जाहिर सी बात है अगर कोई सुन्दर तस्वीर लगी हो किसी लड़की के प्रोफाइल पर तो रिक्वेस्ट इसलिए नहीं आती की वो आपका प्रशंशक है आपकी कविताएं पसंद हैं...बल्कि इसलिए आती है की चेहरे की खूबसूरती दिखाई पड़ी है उसे... अब गलती से हम उस प्रोफाइल का निरीक्षण करने पहुँच गए .. जहाँ हमें यह तस्वीर प्राप्त हुई ... माफ़ कीजियेगा जहाँ तक मुझे मेरे दायित्व का पता है मेरी कलम कोई मनोरंजन का बीन बजाने का साधन नहीं है ...मेरा काम केवल प्रेम कि कविताएं लिखना नहीं बल्कि ऐसी बाते भी रखना है जो मैं नज़रअंदाज़ न तो खुद कर सकती हूँ न ही चाहती हूँ कि कोई और करे ...  इक तरफ तस्वीर में लिखी है वो बाते हैं जो नाली के कीड़ो (इससे ज्यादा गन्दा बोलना मेरी सीमा में नहीं वरना ज़रूर बोलती ) जैसी सोच रखने वाला पुरुष जाहिर करता है औरत के अंगो के प्रति अपनी मानसिकता .... इक तरफ है वो आइना जो उनको दिखाना ज़रूरी है ... कि औरत मात्र गोश नही है....

























नहीं कोई गोश नहीं
लेकिन बना दी गयी
बाज़ारो में सब गोशो से
ज्यादा महंगे दामो पर मिल जाएगा
मेरा भी देह जिन्दा जी-मान ...
खरीददारों कि कमी नहीं
बड़े से छोटे समाज के
छुपे हुए सौदागर
दिन-रात उस बाजार में
मक्खियों कि तरह भिनभिनाते हैं
मैं अभिनेत्री बन
तुम्हारा मनोरंजन करने के लिए
तमाम जोखिम उठाती रही
और तुम मेरी ही तस्वीरो पर
अपनी मानसिकता निहित कर
चिपका देते हो अपने वाल पर
छी............
किसी भी आम औरत कि तरफ
मुझे भी फर्क पड़ता है
भले ही मैं
तुम्हारे लिए मात्र साधन हूँ
लेकिन मैं भी स्त्री ही हूँ
वास्तविकता यही है कि
तुम प्रेम के पात्र नहीं
सिर्फ घृणा के पात्र हो
पत्थर कि मूरति को
वस्त्र पहनाते हो
उसके आगे सर झुकाते हो
सोलह श्रृंगार का चढ़ावा करते हो
कन्याओ को भोज करवाते हो
भेड़ियो....
और जिन्दा स्त्री के वस्त्र उतारते हो
मान जो उसका
सबके कीमती श्रृंगार है
उसको ही छीन लेते हो
हमें ही अपनी वासना का
भोग बना लेता हो...
मुझे तुमसे घृणा है
अथाह घृणा.........................................
और जिस दिन
सारी सीमाये ख़त्म हो जायेगी
सहन कि
ये रोग महामारी कि तरह
हर औरत के जहन में
तुम्हारे लिए पनप जाएगा
तब तुम्हारा सर्वनाश निश्चित है !!



_____परी ऍम 'श्लोक'


नोट:
मेरे मन में जो उठा मैंने लिख दिया ... हो सकता हो किसी को लगे कि मैंने गलत भाषा या तरीका अपनाया ... किन्तु सत्य तो अक्सर कड़वा होता है न ... उसको सज़ा कर कहना मेरे बस नहीं था !! 


 

21 comments:

  1. चित्र को संशोधित कर सही करारा जवाब उन सभी बिमार मानसिकताओं को..।।

    ReplyDelete
  2. बिल्कुल सही किया आपने एैसी मानसिकता रखने वालों को आईना दिखाना जरूरी है।
    शोशल मीडिया पर कोई स्त्री नज़र आनी चाहिए। ये नहीं समझते कि उनकी मां,बहन , बीवी भी एक स्त्री ही हैं।
    गाहे बगाहे महिलाओं कि फोटोज पर भद्दी टिप्पणियां देते रहते हैं।
    बहुत सही लिखा
    I proud of you.

    ReplyDelete
  3. Bahut sahi jawab diya hai Aapne...
    Mujhe lagta hai har aurat ko isi tarah ka karara tamacha maarna chahiye unlogon ke munh par jo log auraton ke liye gandi soch rakhta hai ya auraton ki jism ko gandi nazar se dekhta hai

    ReplyDelete
  4. आपने बिलकुल सही लिखा है परी जी ।
    स्त्री के वास्तविक देवी स्वरूप को आपके द्वारा एडिट किया गया चित्र बखूबी दर्शाता है।

    सादर

    ReplyDelete
  5. आदरणीया परी जी सादर नमन! सही जवाब एक घटिया मानसिकता वाले को!

    ReplyDelete
  6. आपसे मेरी सहमति

    ReplyDelete
  7. मानसिक रोगियों की कोई कमी नहीं, लेकिन दुर्भाग्यवश सभ्य समाज को इन्हें भुगतना पड़ता है

    ReplyDelete
  8. sab buri mansikta ka natiza hai,soch badlni hogi agr bura khyal ata h to jakr apni mata-bheno ko kyu nhi chdte soch badlne k liye thoda kadwa bolna hoga ..
    or bhut khub kha apne

    ReplyDelete
  9. घाटियाँ लोगों के मुह पर जोरदार तमाचा

    ReplyDelete
  10. सोचता हूँ कि ऐसी सोच रखने वालों के घर की औरतों भी गन्दी निगाहों से कैसे बचती होंगी?

    ReplyDelete
  11. मानसिकता बहुत मायने रखती है परी जी ! लेकिन आपने ऊपर एक जगह लिखा है कि ज्यादातर लोग बुरे हैं , मैं ऐसा नहीं मानता ! वास्तव में ज्यादातर लोग अच्छे हैं लेकिन बुरे लोगों की तरह वो खुद को प्रचारित नही कर पाते और न उनको उनके अच्छे कामों का प्रतिफल मिल पाटा है ! आप किसी एक व्यक्ति को आंककर पूरे वर्ग को कटघरे में नही ल सकते ! हाँ , आपकी बात से सहमत हूँ कि दुनियां में ऐसे लोगों की जो औरत को सिर्फ भोग्या समझते हैं !

    ReplyDelete
  12. जिसपर कोई संस्कार हो वह हर शक्स औरत कि इज्जत करताही है. लीकीन इज्जत न किया जाये ऐसी भी कई महिलाये हमारे आसपास होती है.

    ReplyDelete
  13. बेहद खूबसूरत अंदाज़ में आपने अपनी लेखनी से इस कविता को जन्म दिया है | मेरी जानिब से ढेरों दाद वसूल पाइयेगा परी जी |
    लेकिन एक बात मैं यहाँ कहना कहूंगा ...किसी भी संवेदनशील टापिक पर कविता को अंजाम देना कोई आसान काम नहीं है.....कृति की गरिमा उसकी शुरुआत उसका पेट और उसके अंत पर निर्भर होती है | और सबसे बड़ी बात बात उसका मर्म उसके सब्जेक्ट पर निर्भर करता है | आपने जिस सब्जेक्ट का चयन किया वो बहुत ही संवेदनशील है | संवेदनशील इसलिए ऐसी कविताओं को जो इस तरह की फोटो कृति हो उस पर लिखी कोई भी रचना तकरीबन सभी को आकर्षित करती है....चाहे वो किसी भी मकसद से हो | हर व्यक्ति को उसके जवाब में अगर कुछ लिखा गया हो, तो माशाअल्लाह सोने में सुहागा ही समझा जाता है | इस लिए हम जैसे कलमकारों को ऐसे टापिक पर लिखते हुए बहुत ध्यान की आवश्यकता होती है | सबसे बड़ा जो चेलेंज होता है वो शब्द चयन का , जिसे ध्यान में रखना होता है उसी पर हमारी कविता की गरिमा टिकी होती है..खासकर अगर लिखिका फीमेल हो तो पाठकों की संख्या का आप अंदाज़ा लगा सकते हैं | लेकिन आजकल इसमें भी कोई फरक नहीं माना जाता की लेखक कौन है | ज़माना बहुत तेज़ी से बदल रहा है |
    आपकी लेक्नी ने बहुत कुछ ब्यान किया और बहुत ही बेहतरीन मुजायरा किया लेकिन एक जगह नज़रें कुछ देर रुकी रहीं कुछ कमी सी महसूस हुई जिस वज़ह से मेरी कलम चलने को मजबूर हुई...

    "और जिन्दा स्त्री के वस्त्र उतारते हो
    मान जो उसका
    सबके कीमती श्रृंगार है
    उसको ही छीन लेते हो
    हमें ही अपनी वासना का
    भोग बना लेता हो...
    मुझे तुमसे घृणा है
    अथाह घृणा........................................."

    शब्द चयन आपका यहाँ मुझे कमज़ोर लगा ..इन्हीं भावों को कुछ दुसरे कवि शब्दों में कहें तो जियादा बेहतर प्रतीत होगा...." जैसे वस्त्र-हरण इतियादी ....

    परी जी साधारणतय मैं किसी भी कृति पर इस तरह लिखने का आदि नहीं हूँ....लेकिन एक अलग धारणा पर शब्दों के चयन पर एक लेखक की हेसियत से मेरी कलम को चलने पर मजबूर कर दिया |

    मेरे शब्दों से अगर आपके ज़हन को ज़रा भी पीड़ा पहुंची हो तो तह-ए-दिल से क्षम प्रास्र्थी हूँ |

    शुक्रिया


    हर्ष महाजन

    ReplyDelete
  14. Aapko yahan dekhkr khushi hui aur Aapki tippani ka swagat karti hun ... Aapki kisi baat se peeda nhi pahunchi ..main aapko batana chaahungi ki yahan maine badi saral shabdo me apni baat rakhne ki koshish ki hai bhale hi ise kavita ke tour par kahi kintu uss waqt yah meri manodasha thi mera gussa tha jo iss panne par utara hai...iss par koi kavita likhane ka irada nhi tha bas jo man me aayaa likhati chali gayi mujhe badi hi sahaj bhasha me yah sandesh sabko dena tha...so shabdo ke chayan pr dhyaan nhi diyaa... Aur na h soche samjhe shabdo ka prayog kiyaa..bas likhati chali gayi... !!
    Yah topic koi jaan bujh kar khoj kar nhi maine...... Aap aate rahiye sanwaad banaaye rakhiye. ,,,,,, aabhaar aapkaa !!!

    ReplyDelete
  15. Ignore such mentally sick people .

    ReplyDelete
  16. bahut hi sateek jawab hai, ye tasveer vahan bhi awashya daliyega jahan se pehli prapt hui.

    man ke bhaavon ko bade hi saral tareeke se prastut kiya hai.


    shubhkamnayen

    ReplyDelete
  17. परी श्लोक जी ! आज आपकी कुछ रचनायें पढ़ीं । निश्चित ही नयी पीढ़ी के पास बहुत कुछ है कहने के लिये .....कहा भी जाना चाहिये किंतु सम्प्रेषणीयता के तत्वों का यदि ध्यान रखा जाय तो सोने में सुहागा हो जाता है । हम नयी पीढ़ी से अपेक्षा रखते हैं कि वे भाषा की शुद्धता अर्थात् व्याकरण ( एवं उर्दू के हर्फ़ों में नुक्ता ) का ध्यान रखेंगे इससे भाषा प्रभावी होती है और उच्च शिक्षितों में लोकप्रिय भी । आशा है आप इस टिप्पणी को सकारात्मकरूप में लेंगी । कल्याणमस्तु ।

    ReplyDelete
  18. एक बात और .......अच्छा लिखने के लिये आवश्यक है अच्छा पढ़ना । जयशंकर प्रसाद, मन्नू भण्डारी, शिवानी, आशापूर्णादेवी, शरत चन्द्र आदि को पढ़ना अद्भुत् आनन्द का स्रोत है । अन्यथा मत लेना, बच्चों को हम ही नहीं बतायेंगे तो और कौन बतायेगा !

    ReplyDelete
  19. पहले तो मैं आपकी बेहतरीन रचना के लिए बधाई देता हूँ ....रचना के साथ आपका नोट पढ़ा और भी बहुत सारे लोगों द्वारा की गयी टिप्पणिया, मुझे देर से समझ आया कि आखिर यहाँ पर प्रसंग के सन्दर्भ में टिप्पणिया क्यों नहीं की गयी. आवाज उठाने वाले के विचारों को किस प्रकार दबा दिया जाता है यह सबसे अच्छा उदाहरण है...मेरी टिप्पणी को अंन्यथा कोई भी मत ले...पर मैं यही कहूँगा सबके कलम की अपनी एक पहचान है जिसे किसी को पढ़कर केवल उसकी अपनी भाषा में समझा जा सकता है और कुछ कहा जा सकता है परन्तु लिखने वाले ने क्या-क्या उसमें लिख रखा है यह हर कोई नहीं समझ सकता......जैसे गीता को हर कोई नहीं समझ सकता.....आपने समसामयिक मुद्दा उठाया...अतः इतने सवाल उठे ....आगे भी कलमबद्ध कर हमारे बीच प्रस्तुत करते रहिये .........मुझे पढवाने के लिए आपका आभार!!

    ReplyDelete
  20. चित्र के माध्यम से बहुत ही सही और करारा जबाब . सुन्दर रचना के लिए बधाई...

    ReplyDelete
  21. आपकी रचना पढ कर एक पूराना गीत याद आ गया...... औरत ने जन्म दिया मर्दोँ को, मर्दोँ ने उसे बाजार दिया....
    जहाँ तक मानसिकता का प्रश्न है... गन्दी मांसिकता वाले लोग किसी दूसरे ग्रह के प्राणी नहीँ हैँ... वह भी किसी न किसी न किसी के बेटे, भाई, पिता, चाचा या मामा हैँ. इस मानसिकता को बद्लने के लिये बहुत से आयाम बदलने की आवश्यकता है. और ऐसा भी नहीँ है कि सिर्फ मर्द ही गँदी मानसिकता रखते हैँ...यह दोनोँ लिँगोँ के लिये प्रभावी है ... हाँ प्रतिशत या अनुपात मेँ अंतर हो सकता है.... सार्थक रचना के लिये बधाई

    ReplyDelete

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!