Thursday, June 11, 2015

ये ज़रूरी तो नहीं

ये ज़रूरी तो नहीं कि 
मुझपर रोज़ मेहरबां हो ख़ुदा 
उसके दर पर भी तो लाखों सवाली होंगे 
ये ज़रूरी तो नहीं कि
रोज़ मेरे जज़्बातों को मिलते रहे लव्ज़ नए 
और हर रोज़ ख़्यालों को 
तेरी गली में आने की इज़ाज़त हो 
यूँ रोज़ दरीचे का पर्दा हटा मिल जाए 
चाँद मुझे ऐन चमकता हुआ दिख जाए

कभी ये भी तो हो सकता कि 
खाली-खाली शब-औ-सहर गुज़र जाए 
कुछ सूझे न मुझे कहने को और दिन मर जाए 

ये ज़रूरी तो नहीं कि
दिल मेरी उंगलियों का साथ दे हरदम 
कलम दिल की तमाम उलझन समझे और मैं रोज़ लिखूं
ये ज़रूरी तो नहीं !!

____________________ 

© परी ऍम. 'श्लोक'  

14 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना

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  2. बिलकुल ये जरुरी नहीं हर दिन कलम चले और बेहतरीन ही लिखे पर दिल की आवाज़ दबाई तो नहीं जा सकती पर हर बार की तरह आपकी एक और उम्दा रचना

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  3. शानदार कल्पना पूर्ण रचना परी जी |

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  4. हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार ,बधाई. कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  5. अनूठे अहसास - लाजवाब

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  6. सुन्दर रचना । सुन्दर भाव

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  7. सुन्दर रचना

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  8. बहुत खूब परी जी।

    सादर

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  9. वाह ---- बेहद खुबसूरत रचना
    बधाई

    होना तो कुछ चाहिए

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  10. कभी ये भी तो हो सकता कि
    खाली-खाली शब-औ-सहर गुज़र जाए
    कुछ सूझे न मुझे कहने को और दिन मर जाए
    खूबसूरत एहसासों और अल्फ़ाज़ों से सजी शानदार अभिव्यक्ति परी जी !

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  11. बिलकुल ज़रूरी नहीं

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