Thursday, April 3, 2014

"ए ! समंदर"

देखो !
सेहरा आ रहा है
मैं अब नाव से
उतर जाउंगी
थोड़ा दाए-बाए घूम के
फिर सीधा मुड़ जाउंगी
तुम लहरो से कह्देना
जब पहुँचना मझधार में
हम उनका जिक्र करेंगे अक्सर
अपनी कविता के संसार में

ए ! समंदर
आउंगी मिलने जब भी
आएगी उन उफानों कि याद
फिर तुमसे ले जाउंगी
जो भी मिल जाएगा ज्ञान
जाने कितने शंख, सीप, मोती
बाहों में लेकर आता है
बिना इज्जाजत फिर कोई भी
किनारो से उठा ले जाता है
उमड़ उमड़ के तू उठता है
फिर चट्टानों से टकराता है
हे समंदर तू कितना बड़ा है
फिर भी तो चोट खाता है

तुझे देख कर आया ध्यान
शायद ! ऐसे ही बनते हैं महान
जीवन में खताओ से सीख कर
जो चलता रहे वो है इंसान !!

रचनाकार : परी ऍम श्लोक

 

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